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पवित्र जगन्नाथपुरी
ओड़िशा के पुरी शहर में स्थित जगन्नाथ मंदिर, भगवान श्रीकृष्ण जी को समर्पित है। यह ओड़िशा के सबसे बड़े और देश के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। हिन्दू शास्त्रों में भगवान श्रीकृष्ण जी की नगरी जगन्नाथपुरी या पुरी बताई गयी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा इंद्रघुम्न भगवान जगन्नाथ को शबर राजा से यहां लेकर आये थे। 65 मीटर ऊंचे मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चोलगंगदेव तथा अनंग भीमदेव ने कराया था।
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भगवान कृष्ण के जीवन का चित्रण
मंदिर में स्थापित, मूर्तियां नीम की लकड़ी की बनी हुई है तथा इन्हें प्रत्येक 14 से 15 वर्ष में बदल दिया जाता है। मंदिर की 65 फुट ऊंची अद्भत पिरामिड़ संरचना, जानकारी से उत्कीर्ण दीवारें, भगवान कृष्ण के जीवन का चित्रण करते स्तंभ, मंदिर की शोभा को चार-चांद लगाते हुए प्रतीत होते हैं। हर साल यहां लाखों भक्त और विदेशी पर्यटक, पवित्र उत्सव ‘जगन्नाथ रथ यात्रा’ में हिस्सा लेने के लिए आते हैं।
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मोक्ष की प्राप्ति
हिन्दू धर्मग्रन्थ ब्रह्मपुराण में जगन्नाथ पुरी की महिमा बताते हुए कहा गया है कि वट वृक्ष पर चढ़कर या उसके नीचे या समुद्र में, जगन्नाथ के मार्ग में, जगन्नाथ क्षेत्र की किसी गली में या किसी भी स्थल पर, यदि कोई व्यक्ति प्राण त्याग करता है तो उसे निश्चय ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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रथयात्रा का पुण्य
जगन्नाथ रथयात्रा की बात करें तो भारत में हिन्दू धर्म के लोगों के बीच यह एक प्रमुख तथा महत्त्वपूर्ण धर्मोत्सव के रूप मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के अवतार ‘जगन्नाथ’ की रथयात्रा का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर बताया गया है। यदि कोई भक्त इस रथ यात्रा में शामिल होकर भगवान के रथ को खींचता है तो उसे यह फल प्राप्त होता है। जगन्नाथ रथयात्रा दस दिवसीय महोत्सव होता है। यात्रा की तैयारी अक्ष्य तृतीय के दिन श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण के साथ ही शुरू हो जाती है।
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