पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान कृष्ण ने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्रमा देख लिया था। इसके बाद उन पर जामवंत की स्यामंतक मणि चोरी करने का झूठा आरोप लगा था। इससे भगवान कृष्ण बहुत दुखी थे। इस पर नारद ऋषि ने उन्हें बताया कि भगवान आपने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चन्द्रमा को देखा था उसी की वजह से आपको मिथ्या दोष का श्राप लगा है। देवर्षि नारद ने उन्हें इसके पीछे की गणेशजी की कथा भी सुनाई।
देवर्षि नारद ने भगवान कृष्ण को बताया कि प्राचीन काल में भगवान गणेश ने चंद्र देव को श्राप दिया था कि जो व्यक्ति भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दौरान चंद्र दर्शन करेगा वह मिथ्या दोष से अभिशापित हो जाएगा (उस पर झूठा आरोप लगेगा) और वह समाज में चोरी के झूठे आरोप से कलंकित हो जाएगा। नारद ऋषि के परामर्श पर भगवान कृष्ण ने मिथ्या दोष से मुक्ति के लिए गणेश चतुर्थी के व्रत को किया और मिथ्या दोष से मुक्त हो गए।
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मिथ्या दोष निवारण मंत्र
चतुर्थी तिथि के प्रारंभ और अंत समय के आधार पर चंद्र-दर्शन लगातार दो दिनों के लिए वर्जित हो सकता है। धार्मिक ग्रंथ धर्मसिन्धु के नियमों के अनुसार सम्पूर्ण चतुर्थी तिथि के दौरान चंद्र दर्शन नहीं करना चाहिए और इसी नियम के अनुसार, चतुर्थी तिथि के चन्द्रास्त के पूर्व समाप्त होने के बाद भी, चतुर्थी तिथि में उदय हुए चंद्रमा के दर्शन चन्द्रास्त तक वर्जित होता है।धार्मिक ग्रंथों के अनुसार अगर भूल से गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन हो जाएं तो मिथ्या दोष से बचाव के लिए यह मंत्र जरूर पढ़ना चाहिए… सिंहः प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः॥