मौत तो मेरी महबूबा है, मैं जब चाहूंगा गले लगा लूंगा- चन्द्रशेखर आजाद
वेदों में शिवजी को अनेक नामों से परिभाषित किया गया है, लेकिन सबमें रुद्र नाम ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है। शिव को ‘रुद्र: परमेश्वर:, जगत्स्रष्टा रुद्र:’ आदि नामों से परमात्मा माना जाता है। यजुर्वेद का रुद्राध्याय तो भगवान रुद्र को ही समर्पित है। उपनिषद् रुद्र को विश्व का अधिपति तथा महेश्वर बताया गया है।
शिवपुराण के अनुसार, ग्यारह रुद्र
एकादशैते रुद्रास्तु सुरभीतनया: स्मृता:।
देवकार्यार्थमुत्पन्नाश्शिवरूपास्सुखास्पदम्।।
अर्थात— ये एकादश रुद्र सुरभी के पुत्र कहलाते हैं। ये सुख के निवास स्थान है तथा देवताओं के कार्य की सिद्धि के लिए शिवरूप से उत्पन्न हुए है।
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आज भी भगवान शिव के स्वरूप ये सभी एकादश रुद्र देवताओं की रक्षा के लिए स्वर्ग में विराजमान है और ईशानपुरी में निवास करते हैं। उनके अनुचर करोड़ों रुद्र कहे गये है, जो तीनों लोकों में चारों ओर स्थित है।शिवपुराण में कहा गया है कि ग्यारह रूद्रों की कथा को एकाग्रचित्त होकर पढ़ने का महान फल प्राप्त होता है। यह धन व यश देने वाला है, मनुष्य की आयु की वृद्धि करने वाला है, सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला है, पापों का नाशक एवं समस्त सुख-भोग प्रदान कर अंत में मुक्ति देने वाला है।
शिवमहापुराण में ग्यारह रुद्र के नाम
1- कपाली
2- पिंगल
3- भीम
4- विरुपाक्ष
5- विलोहित
6- शास्ता
7- अजपाद
8- अहिर्बुध्न्य
9- शम्भु
10- चण्ड
11- भव
शैवागम के अनुसार, एकादश रुद्रों के नाम
1- शम्भु
2- पिनाकी
3- गिरीश
4- स्थाणु
5- भर्ग
6- सदाशिव
7- शिव
8- हर
9- शर्व
10- कपाली
11- भव
श्रीमद्भागवत में एकादश रुद्रों के नाम
1- मन्यु
2- मनु
3- महिनस
4- महान्
5- शिव
6- ऋतध्वज
7- उग्ररेता
8- भव
9- काल
10- वामदेव
11- धृतव्रत
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