भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और इंदौर-1 से भाजपा प्रत्याशी कैलाश विजयवर्गीय की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। नामांकन दाखिल करने के दौरान जो शपथ-पत्र उन्होंने पेश किया, उसमें दो प्रकरणों का उल्लेख नहीं किया। इस पर कांग्रेस प्रत्याशी संजय शुक्ला ने रिटर्निंग ऑफिसर को शिकायत दर्ज कराई, जो खारिज हो गई। शुक्ला अब हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने जा रहे हैं।
पश्चिम बंगाल में भाजपा के प्रभारी रहे कैलाश पर एक महिला ने बलात्कार, छल, अमानत में खयानत सहित अन्य गंभीर धाराओं को लेकर जिला कोर्ट में मुकदमा दर्ज करने का आवेदन किया था। कोर्ट के निर्देश पर अलीपुर पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया, जिसकी विजयवर्गीय ने अपील हाई कोर्ट में की, जिसे खारिज कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जहां से निचली अदालत को फिर से आदेश पर विचार करने के निर्देश दिए गए। केस अब तक लंबित है, खत्म नहीं हुआ है।
30 अक्टूबर को क्षेत्र-1 से भाजपा प्रत्याशी कैलाश ने नामांकन दाखिल कर शपथ पत्र पेश किया। इसमें पांच प्रकरणों का उल्लेख किया गया, लेकिन इस गंभीर मामले की जानकारी नहीं दी गई। इसके अलावा छत्तीसगढ़ की दुर्ग पुलिस ने भी विजयवर्गीय को स्थायी फरार घोषित कर स्थायी गिरफ्तारी वारंट जारी कर रखा है। विजयवर्गीय ने इसकी जानकारी भी नहीं दी। इस पर कांग्रेस प्रत्याशी संजय शुक्ला के प्रस्तावक दीपू यादव के हस्ताक्षर से विधि सलाहकार सौरभ मिश्रा ने भारत निर्वाचन आयोग, राज्य निर्वाचन पदाधिकारी, जिला निर्वाचन अधिकारी और विधानसभा-204 के रिटर्निंग अधिकारी ओम नारायण सिंह को मामले की मय दस्तावेज शिकायत दर्ज कराई। सिंह ने आपत्ति को खारिज कर दिया। इस पर शुक्ला के वकील मिश्रा का कहना है कि न्याय के लिए अब हम हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था झटका
सामूहिक बलात्कार और धमकी देने के मामले में कैलाश विजयवर्गीय को सुप्रीम कोर्ट ने झटका दिया था। न्यायाधीश एमआर शाह व संजीव खन्ना की खण्डपीठ ने विजयवर्गीय की अपीलों को निस्तारित करते हुए आदेश दिया। न्यायालय ने कहा कि मजिस्ट्रेट कोर्ट मामले का परीक्षण कर विवेकाधिकार का प्रयोग करे और तय करे कि एफआइआर दर्ज करने का आदेश देना है या नहीं या फिर सीधे प्रसंज्ञान लेकर अपने स्तर पर जांच की जाए। मजिस्ट्रेट कोर्ट को यह भी विकल्प दिया कि कोई भी निर्णय लेने से पहले अब तक सामने आए दस्तावेजों के आधार पर प्रारभिक जांच (पी.ई.) के लिए मामला पुलिस के पास भी भेजा जा सकता है, ताकि पता चल सके कि परिवाद के आधार पर अपराध बनता है या नहीं। कोर्ट ने मजिस्ट्रेट कोर्ट के एफआइआर दर्ज करने के आदेश को रद्द कर दिया, वहीं कलकात्ता हाईकोर्ट की ओर से मजिस्ट्रेट कोर्ट को दिए नए सिरे से कार्यवाही करने के आदेश को यथावत रखा है।
अदालत दर अदालत चला मामला तथ्यों के अनुसार पुलिस के कैलाश विजयवर्गीय व दो अन्य के खिलाफ एफआइआर दर्ज नहीं करने पर परिवादिया ने पश्चिम बंगाल के अलीपोर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय में परिवाद दायर किया। नवंबर 2020 में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने परिवाद खारिज कर दिया।