सुप्रीम कोर्ट ने एडवोकेट एक्ट 1961 की धारा-24 का हवाला देते हुए कहा कि इस एक्ट के तहत लॉ ग्रैजुएट्स के लिए वकील के तौर पर रजिस्ट्रेशन के लिए सामान्य वर्ग के लिए 650 रुपये की राशि तय है। इसे बढ़ाने के लिए संसद चाहे तो संशोधन करके इसे बढ़ा सकती है। एससी/एसटी के लिए यह राशि 125 रुपये है। हालांकि, आरोप लगे थे कि हर राज्य की बार काउंसिल रजिस्ट्रेशन के लिए मनमानी फीस ले रही थी। कहीं कहीं तो 15 से 45 हजार रुपये तक फीस लिए जा रहे थे।
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कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा (Supreme Court)
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि नामांकन के लिए पूर्व शर्त के रूप में अत्यधिक शुल्क वसूलना, विशेष रूप से कमजोर वर्गों से संबंधित लोगों के लिए, उनके पेशे को आगे बढ़ाने में बाधाएं पैदा करता है। ऐसे में उम्मीदवारों के पास कोई विकल्प नहीं बचता और उन्हें काउंसिल की ओर से मजबूर किया जाता है। इस मामले में मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने सुनवाई की। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता का आरोप है कि ओडिशा में पंजीकरण शुल्क 42,100 रुपये, गुजरात में 25,000 रुपये, उत्तराखंड में 23,650 रुपये, झारखंड में 21,460 रुपये और केरल में 20,050 रुपये लिए जा रहे हैं। याचिका में कहा गया कि इतने अधिक शुल्क के कारण उन युवाओं को वकील बनने से वंचित होना पड़ता है, जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती है।
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