दरअसल वेयरहाउस में बारिश के पहले जमा चांवल के लॉट की बोरियां को समय पर ढंकना होता है। इसे अच्छी तरह कवर करके कीड़ा मार दवा का छिडक़ाव किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में बेहद सावधानी भी बरती जानी जरूरी होती है। इन सब तरीकों को मानसून के पहले पूरा करना होता है। जिससे कीड़े का पैदा होना खत्म हो जाता है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया। जिसका खामियाजा पूरा गांव भुगत रहा है।
मानसून में बस्तर में सबसे ज्यादा सर्पदंश, डेंगू और मलेरिया का खतरा बना रहता है, लेकिन अब इन खतरों के अलावा तोकापाल ब्लॉक के ग्राम पंचायत केशलूर में ग्रामीणों के सामने एक नई समस्या कीड़ों की आकर खड़ी हो गई है। लाखों की संख्या में इन कीड़ो ने पूरे गांव में अपना कब्जा जमा लिया है। अब गांव वाले घर से निकलते हैं वे उनके आंखों में घुस रहे है, वहीं घर में खाने के लिए बैठ रहे हैं तो उनकी थाली में गिर रहे हैं। इन कीड़ों ने गांव वालों का जीना मुश्किल कर दिया है।
चांवल की बोरियों को ढकने के लिए उन्हें समय पर कवर नहीं मिला। साधन भी उपलब्ध नहीं था। जिसके कारण आवश्यक कार्रवाई नहीं की जा सकी। दरअसल चांवल की बोरियों को कवर करके दवाई का छिडक़ाव करना आवश्यक है, जो नहीं किया। जल्द ही इसे करवा लिया जाएगा।
कीड़े की समस्या आते ही गांव वालों के साथ मिलकर वेयरहाउस प्रबंधक से शिकायत मौखिक तौर पर की गई। लेकिन जिम्मेदारों के द्वारा कोई आवश्यक कार्रवाई नहीं की। अब लोगों का जीना मुहाल हो गया है। गांव वाले इसके खिलाफ अब आंदोलन की बात कह रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि यह समस्या पिछले दो से चार दिन की है। बल्कि गांव वाले इस समस्या से पिछले एक महीने से भी अधिक समय से परेशान है। जब इस तरह की समस्या आने की जानकारी थी तो वेयरहाउस को आबादी वाले इलाके के पास बनाना ही नही चाहिए था।
पिछले एक महीने से पूरी ंिजंदगी में कीड़ा मिल गया है। खाना खाते समय में प्लेट में कीड़ा, बाहर निकलने पर कान और आंख में कीड़ा, सोते समय बिस्तर में कीड़ा। पूरे गांव का जीना मुहाल हो गया है। अब तो लोग बीमार भी होने लगे हैं। मैं खुद शहर में दोस्त के यहां रहने जाने की सोच रहा हूं।