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दुर्ग

धन्य हो प्रभु, यहां 22 नन्ही जान स्पेशल यूनिट में कोई डॉक्टर नहीं देखने वाला

चाइल्ड केयर यूनिट में इस समय 22 मासूम बच्चे भर्ती हैं। एक-एक
कर विशेषज्ञ चिकित्सकों के सरकारी नौकरी छोडऩे से यह यूनिट सबसे अधिक
प्रभावित हुई है।

दुर्गJul 04, 2017 / 12:55 pm

Satya Narayan Shukla

Durg District hospital

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दुर्ग. जिला अस्पताल में बच्चों के इलाज करने के लिए अब एक ही विशेषज्ञ चिकित्सक बचे हैं। बच्चों के लिए बने 18 बेड के स्पेशल चाइल्ड केयर यूनिट(एसएनसीयू) में इस समय 22 मासूम बच्चे भर्ती हैं। एक-एक कर विशेषज्ञ चिकित्सकों के सरकारी नौकरी छोडऩे से यह यूनिट सबसे अधिक प्रभावित हुई है।

जिला अस्पताल के ओपीडी में भी रोज औसतन 90 बच्चों को इलाज के लिए उनके माता-पिता लेकर आते हैं। अब बच्चों के ओपीडी में तो ताला लगने की नौबत आ गई है। शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रफुल्ल जैन के स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआर)लेने के बाद अब जिला अस्पताल में बच्चों के एक मात्र चिकित्सक डॉ.रजनीश मल्होत्रा ही हैं। उन्हें अब एसएनसीयू संभालने के साथ ओपीडी में भी सेवा देनी होगी। एक चिकित्सक के लिए दोनों जवाबदारी एक साथ संभालना बहुत मुश्किल होगा।

नवजात बच्चों को भी देखने की जवाबदारी होती है विशेषज्ञ की
18 बेड के एसएनसीयू में भर्ती नवजातों क ा इलाज की जिम्मेदारी अब जिला अस्पताल के एक मात्र शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ मल्होत्री की होगी। अब तक रोटेशन में एक विशेषज्ञ एसएनसीयू ड्यूटी करते थे। एक ओपीडी और कॉल ड्यूटी में रहते थे। वर्तमान में केवल एक विशेषज्ञ के रहने से व्यवस्था ठप हो जाएगी। जिला अस्पताल में प्रतिदिन 70 से 100 बच्चों को उपचार के लिए लाया जाता है। एसएनसीयू में 18 बिस्तर हैं। जहां हर दिन 20 से 25 नवजातों को रखा जाता है। तत्काल जन्में बच्चों को भी जिला अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ को देखना होता है।

1998 में शुरू हुआ था एसएनसीयू
डॉ.प्रफूल्ल जैन की पहल पर दुर्ग जिला अस्पताल में एसएनसीयू की स्थापना की गई। 1998 में जनसहयोग से बेबी वार्मर व अन्य संसाधन का इंतजाम किया गया। इसके बाद चार बेड एसएनसीयू वर्तमान फिजोथैरपी यूनिट के एक हिस्से में शुरु किया गया। इसके बाद इसे आठ बिस्तर किया गया। तत्कालीन सिविल सर्जन डॉ.अजय दानी ने इसे आगे बढ़ाते हुए यूनिसेफ की मदद से नया एसएनसीयू जिला अस्पताल में बनवाया।

तो ठप हो जाएगी एसएनसीयू

अब तक डॉ.जैन व डॉ. मल्होत्रा दोनों देख रहे थे। एक ओपीडी में दूसरा एसएनसीयू में। ओपीडी में 2 बजे तक सेवा देने वाले चिकित्सक को कल ड्यूटी भी करना पड़ता है। अब एसएनसीयू से साथ ओपीडी देखने के बाद आधी रात को काल ड्यूटी करनी पड़ी तो एक मात्र डॉक्टर के लिए यह बहुत मुश्किल होगा। अगर वे छुट्टीपर गए तब तो एसएनसीयू के साथ ओपीडी ठप ही हो जाएगी। इसका असर बच्चों की चिकित्सा पर पड़ेगा। कमजोर तबके के लोग तो मुसीबत में पड़ जाएंगे, क्योंकि निजी अस्पतालों की फीस चुकाना उनके लिए मुश्किल होगा।

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