बीएपी को मिला आदिवासी वोटरों का साथ
दरअसल चौरासी विधानसभा सीट पर आदिवासी वोटर ही गेमचेंजर साबित होते हैं। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस इसमें सेंध लगाने में कामयाब नहीं हो पाई और कटारा ने आसानी से चुनाव निकाल लिया। जातीय समीकरण पर गौर करें तो यह आदिवासी बहुल सीट है। आदिवासी वोटरों की संख्या करीब 75 फीसदी है। 25 फीसदी ही दूसरी जातियों, जिसमें मुस्लिम, ब्राह्मण, राजपूत, और ओबीसी हैं। वहीं अनिल कटारा आदिवासी पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। वहीं चिखली क्षेत्र से भारत आदिवासी पार्टी से जिला परिषद सदस्य हैं।राजकुमार रोत का भी दिखा जलवा
दरअसल इस सीट पर पिछले कई विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुख्य मुकाबला देखा गया है, लेकिन साल 2018 में भारतीय ट्राइबल पार्टी ने चुनावी मैदान में एंट्री मारी और चौरासी विधानसभा में राजनीतिक विशेषज्ञों के गणित को बिगाड़ दिया। 2018 के चुनाव में बीटीपी पार्टी से राजकुमार रोत विधायक बने। उन्होंने 12 हजार से ज्यादा वोटों की लीड लेकर भाजपा के सुशील कटारा को हराया था। वहीं साल 2023 में नई पार्टी बीएपी से राजकुमार रोत फिर मैदान में उतरे और बड़ी जीत दर्ज की। इस चुनाव में भी उन्होंने 69 हजार से ज्यादा वोटों की लीड लेते हुए भाजपा के सुशील कटारा को शिकस्त दी थी। चौरासी विधानसभा को राजकुमार रोत का गढ़ माना जाता है। उनके सांसद बनने के बाद इस सीट पर उपचुनाव हुआ था। ऐसे में इस सीट के नतीजों का भारत आदिवासी पार्टी और सांसद राजकुमार रोत के राजनीतिक भविष्य पर खास असर पड़ने वाला था। इसलिए रोत भी चुनावी मैदान में डटे रहे और आखिरकार अपने गढ़ को बचा लिया।
कांग्रेस-बीएपी के बीच नहीं हुआ गठबंधन
लोकसभा चुनाव में बीएपी और कांग्रेस गठबंधन कर मैदान में उतरी थी, लेकिन उपचुनाव में दोनों ने पार्टियों ने स्वतंत्र चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी। दरअसल सांसद राजकुमार रोत ने पूर्व में कहा था कि कांग्रेस चौरासी और सलूंबर में अपने प्रत्याशी नहीं उतारती है तो बीएपी देवली-उनियारा में अपना प्रत्याशी नहीं उतारेगी। हालांकि दोनों पार्टियों के बीच बात नहीं बनी थी। ऐसे में बीएपी परंपरागत वोट बैंक पर पकड़ और अधिक मजबूत करने में काफी पहले से जुट गई थी।गलत साबित हुआ भाजपा का फैसला
चौरासी विधानसभा सीट पर भाजपा 1990 से ही सुशील कटारा या फिर उनके परिवार को टिकट दे रही थी। 2003 और 2013 के चुनाव में सुशील कटारा ने जीत हासिल की थी। हालांकि बीते दो चुनावों में कटारा जीत तो हासिल नहीं कर पाए, लेकिन दोनों चुनावों में वे दूसरे नंबर पर रहे थे। इस बार भी उम्मीद की जा रही थी कि भाजपा सुशील कटारा को टिकट दे सकती है, लेकिन बीजेपी ने कारीलाल ननोमा को चुनावी मैदान में उतार दिया। यह भी पढ़ें