लक्षण
स्टूल के साथ खून आना (खूनी दस्त), पेटदर्द, एनीमिया, थकान, सांस फूलना, बुखार, भूख न लगना, वजन घटना और इन वजहों से शरीर में पोषक तत्त्वों की कमी होने से कमजोरी आने जैसे लक्षण सामने आते हैं। कुछ मरीजों को जोड़दर्द, आंख में सूजन, त्वचा पर घाव, पीलिया होना, उल्टी और बेचैनी की शिकायत हो सकती है।
कारण
आनुवांशिकता के अलावा संक्रमण, तनाव, दवाओं का अधिक प्रयोग और संक्रमित भोजन से रोग प्रतिरोधक तंत्र में परिवर्तन होने लगता है। इन वजहों से बीमारी जन्म ले लेती है।
गंभीरता : नियमित कराएं जांच
अल्सरेटिव कोलाइटिस के इलाज को टालते रहना मरीज में कोलोन कैंसर की आशंका को बढ़ा देता है। कोलोन कैंसर की जल्दी पहचान व इलाज के लिए बीमारी के 10 वर्ष बाद नियमित तौर पर गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट से कोलोनोस्कोपी टैस्ट और बायोप्सी कराएं। इसके अलावा बीमारी की गंभीर अवस्था में आंतों से खून बहने से रक्त की कमी होना, आंतों का अत्यधिक फूलना, आंतों का फटना, रक्त से जुड़ा संक्रमण, आंत के कमजोर होने से इसमें छेद आदि का खतरा भी हो सकता है।
स्टूल के साथ खून आना (खूनी दस्त), पेटदर्द, एनीमिया, थकान, सांस फूलना, बुखार, भूख न लगना, वजन घटना और इन वजहों से शरीर में पोषक तत्त्वों की कमी होने से कमजोरी आने जैसे लक्षण सामने आते हैं। कुछ मरीजों को जोड़दर्द, आंख में सूजन, त्वचा पर घाव, पीलिया होना, उल्टी और बेचैनी की शिकायत हो सकती है।
कारण
आनुवांशिकता के अलावा संक्रमण, तनाव, दवाओं का अधिक प्रयोग और संक्रमित भोजन से रोग प्रतिरोधक तंत्र में परिवर्तन होने लगता है। इन वजहों से बीमारी जन्म ले लेती है।
गंभीरता : नियमित कराएं जांच
अल्सरेटिव कोलाइटिस के इलाज को टालते रहना मरीज में कोलोन कैंसर की आशंका को बढ़ा देता है। कोलोन कैंसर की जल्दी पहचान व इलाज के लिए बीमारी के 10 वर्ष बाद नियमित तौर पर गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट से कोलोनोस्कोपी टैस्ट और बायोप्सी कराएं। इसके अलावा बीमारी की गंभीर अवस्था में आंतों से खून बहने से रक्त की कमी होना, आंतों का अत्यधिक फूलना, आंतों का फटना, रक्त से जुड़ा संक्रमण, आंत के कमजोर होने से इसमें छेद आदि का खतरा भी हो सकता है।
इलाज
टैस्ट : रोग का पता लगाने के लिए ब्लड टैस्ट, कोलोनोस्कोपी व बायोप्सी करते हैं। जरूरत के अनुसार स्टूल टैस्ट, पेट का एक्स-रे भी करते हैं।
दवाएं : रिपोर्ट के आधार पर सूजन कम करने व रोग प्रतिरोधक क्षमता को बरकरार रखने के लिए कई दवाइयां दी जाती हैं। इनमें एंटीबायोटिक्स, प्रो-बायोटिक्स, इम्यूनोसप्रेसेंट्स, आयरन व मल्टीविटामिन शामिल हैं।
सर्जरी : गंभीर स्थिति और दवाओं से फायदा न होने पर सर्जरी ही विकल्प है। सर्जरी के दौरान बड़ी आंत को निकाल दिया जाता है। इस बीमारी से पीडि़त अधिकांश मरीज कई बार अमीबायसिस या आंतों के संक्रमण से बचने की दवाएं मनमर्जी से ले लेते हैं जो दिक्कत बढ़ा सकती है। ऐसे में गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट से ही इलाज कराएं और डॉक्टरी सलाह के अनुसार दवाएं लें।
खानपान : मरीज को संतुलित आहार दें। डाइट में सीमित मात्रा में ही कार्बोहाइडे्रट जैसे चावल, बे्रड, आलू आदि दें। खानपान में प्रोटीनयुक्तचीजें जैसे दूध, मछली, अंडे, सब्जियां व फल बढ़ाएं। दूध व दूध से बनीं चीजें प्रोटीन व कैल्शियम का अच्छा स्त्रोत हैं इन्हें जरूर दें। यदि इन्हें खाने से दस्त अधिक हों तो इनकी जगह दही, लस्सी व छाछ दे सकते हैं। खाना बनाते व खाते समय सफाई का ध्यान रखें। बाहर के बजाय घर का बना भोजन ही खाएं।
टैस्ट : रोग का पता लगाने के लिए ब्लड टैस्ट, कोलोनोस्कोपी व बायोप्सी करते हैं। जरूरत के अनुसार स्टूल टैस्ट, पेट का एक्स-रे भी करते हैं।
दवाएं : रिपोर्ट के आधार पर सूजन कम करने व रोग प्रतिरोधक क्षमता को बरकरार रखने के लिए कई दवाइयां दी जाती हैं। इनमें एंटीबायोटिक्स, प्रो-बायोटिक्स, इम्यूनोसप्रेसेंट्स, आयरन व मल्टीविटामिन शामिल हैं।
सर्जरी : गंभीर स्थिति और दवाओं से फायदा न होने पर सर्जरी ही विकल्प है। सर्जरी के दौरान बड़ी आंत को निकाल दिया जाता है। इस बीमारी से पीडि़त अधिकांश मरीज कई बार अमीबायसिस या आंतों के संक्रमण से बचने की दवाएं मनमर्जी से ले लेते हैं जो दिक्कत बढ़ा सकती है। ऐसे में गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट से ही इलाज कराएं और डॉक्टरी सलाह के अनुसार दवाएं लें।
खानपान : मरीज को संतुलित आहार दें। डाइट में सीमित मात्रा में ही कार्बोहाइडे्रट जैसे चावल, बे्रड, आलू आदि दें। खानपान में प्रोटीनयुक्तचीजें जैसे दूध, मछली, अंडे, सब्जियां व फल बढ़ाएं। दूध व दूध से बनीं चीजें प्रोटीन व कैल्शियम का अच्छा स्त्रोत हैं इन्हें जरूर दें। यदि इन्हें खाने से दस्त अधिक हों तो इनकी जगह दही, लस्सी व छाछ दे सकते हैं। खाना बनाते व खाते समय सफाई का ध्यान रखें। बाहर के बजाय घर का बना भोजन ही खाएं।