क्या है डायबिटीज ( Type 1 diabetes )
टाइप-1 डायबिटीज एक प्रकार की ऑटो इम्यून डिजीज है। जिसमें जीन में गड़बड़ी से ऐसा होता है। वहीं टाइप-2 डायबिटीज खराब लाइफस्टाइल से होती है। पेन्क्रियाज हमारे शरीर का प्रमुख अंग है जिसकी इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाएं वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण या एंटीबॉडीज के बनने से जब नष्ट हो जाती हैं तो इंसुलिन बनना कम या बंद हो जाता है। इससे ब्लड में शुगर का स्तर अनियमित होने लगता है।
टाइप-1 डायबिटीज एक प्रकार की ऑटो इम्यून डिजीज है। जिसमें जीन में गड़बड़ी से ऐसा होता है। वहीं टाइप-2 डायबिटीज खराब लाइफस्टाइल से होती है। पेन्क्रियाज हमारे शरीर का प्रमुख अंग है जिसकी इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाएं वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण या एंटीबॉडीज के बनने से जब नष्ट हो जाती हैं तो इंसुलिन बनना कम या बंद हो जाता है। इससे ब्लड में शुगर का स्तर अनियमित होने लगता है।
लक्षण ( juvenile diabetes symptoms )
टाइप-1 डायबिटीज के रोगी में लक्षण तुरंत दिखते हैं। जैसे प्यास, यूरिन व भूख का अचानक बढ़ना प्रमुख लक्षण हैं। इसके अलावा पर्याप्त भोजन करने के बावजूद वजन न बढ़ने व धुंधला दिखाई देने जैसी समस्या होती हैं। कई बार लंबे समय तक लक्षणों की पहचान न होने पर बच्चे को डायबिटिक कीटोएसिडोसिस हो जाता है, जो जानलेवा है। इसमें शरीर में कीटोंसी की मात्रा बढ़ने से किडनी, हृदय आदि को नुकसान पहुंचाने वाले एसिड बनने लगते हैं।
टाइप-1 डायबिटीज के रोगी में लक्षण तुरंत दिखते हैं। जैसे प्यास, यूरिन व भूख का अचानक बढ़ना प्रमुख लक्षण हैं। इसके अलावा पर्याप्त भोजन करने के बावजूद वजन न बढ़ने व धुंधला दिखाई देने जैसी समस्या होती हैं। कई बार लंबे समय तक लक्षणों की पहचान न होने पर बच्चे को डायबिटिक कीटोएसिडोसिस हो जाता है, जो जानलेवा है। इसमें शरीर में कीटोंसी की मात्रा बढ़ने से किडनी, हृदय आदि को नुकसान पहुंचाने वाले एसिड बनने लगते हैं।
इलाज ( juvenile diabetes treatment )
टाइप-2 में दवाओं से शुगर कंट्रोल की जाती है। ऐसा टाइप-1 में नहीं है। इसमें मरीज पूर्णत: इंसुलिन पर निर्भर रहता है।
बच्चे में यदि शुगर का स्तर खाली पेट 126, खाने के बाद 200 और कभी भी जांच के दौरान लक्षणों सहित 200 से ज्यादा आता है तो रोगी को इंजेक्शन के रूप में इंसुलिन देते हैं। जो त्वचा के नीचे लगाए जाते हैं।
टाइप-2 में दवाओं से शुगर कंट्रोल की जाती है। ऐसा टाइप-1 में नहीं है। इसमें मरीज पूर्णत: इंसुलिन पर निर्भर रहता है।
बच्चे में यदि शुगर का स्तर खाली पेट 126, खाने के बाद 200 और कभी भी जांच के दौरान लक्षणों सहित 200 से ज्यादा आता है तो रोगी को इंजेक्शन के रूप में इंसुलिन देते हैं। जो त्वचा के नीचे लगाए जाते हैं।
होम्योपैथी में इंसुलिन रेसिस्टेंस के लिए ‘इंसुलिन’ ( insulin ) दवा रोग व मर्ज के स्थिति देखकर 15 या 30 दिनों के गैप में देते हैं। इनसे रहती शुगर कंट्रोल ( juvenile diabetes symptoms and preventive steps )
आयुर्वेद में इसे प्रिसाज प्रमेह कहते हैं। आंवला, हल्दी, मेथीदाना, जामुन, जौ आदि खाने से शुगर का स्तर सामान्य रहता है। लाल चावल (शाली चावल) खिलाएं।
आयुर्वेद में इसे प्रिसाज प्रमेह कहते हैं। आंवला, हल्दी, मेथीदाना, जामुन, जौ आदि खाने से शुगर का स्तर सामान्य रहता है। लाल चावल (शाली चावल) खिलाएं।