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डिंडोरी

यहां सभी प्रकार के ऋण से मिलती है मुक्ति, एक हजार साल से है आस्था का केंद्र

श्रीऋणमुक्तेश्वर मंदिर कुकर्रामठ: सावन में लगता है श्रद्धालुओं का तांता, दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं लोग, 1000 ईसवी में बना प्राचीन मंदिर, प्रचलित हैं कई लोककथाएं…>

डिंडोरीJul 18, 2022 / 07:01 pm

Manish Gite

डिंडोरी। कुकर्रामठ मंदिर को श्रीऋणमुक्तेश्वर मंदिर (rinmukteshvar temple) के नाम से भी जाना जाता है। यह जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर स्थित है। अमरकंटक रोड पर 10 किमी दूर चलकर ग्राम कूडा मुख्य मार्ग से 4 किमी अन्दर जाने पर कुकर्रामठ गांव में मंदिर स्थित (About Kukarramath temple) है जो कि भगवान शिव को समर्पित है। कहा जाता है कि मंदिर में भगवान शिव की पूजा और दर्शन करने से पितृ ऋण, देव ऋण और गुरु ऋण से मुक्ति मिलती है।

 

आस-पास के लोग और अधिकांश नर्मदा परिक्रमा वासी मंदिर के दर्शन करने अवश्य आते हैं। महाशिवरात्रि, नागपंचमी समेत अन्य धार्मिक त्योहारों पर यहां दूर-दूर से काफी संख्या में भक्तगण दर्शन करने आते हैं। ऋणमुक्तेश्वर मंदिर का निर्माण 1000 ईसवी के आस-पास माना जाता है। कुछ लोग इसे 8वीं सदी का मानते हैं। एक मान्यतानुसार यह मंदिर कल्चुरी कालीन है। यहां कभी 6 मंदिरों का समूह था लेकिन अब यहां सिर्फ यही मंदिर बचा है, बाकी सभी खंडहर हो गए। मंदिर एक विशाल चबूतरे पर बना है, जिसके गर्भगृह में विशाल शिवलिंग है। मंदिर के मुख्य द्वार के सामने नंदी की प्रतिमा है। मंदिर में तीन ओर प्रकोष्ठ बने है, जिनमें संभवत: कभी मूर्तियां स्थापित रही होंगी। मंदिर की दीवारों पर मूर्तियां नजर आती हैं।

 

वर्तमान में अधिकांश मूर्तियों का क्षरण हो गया है। यहां जिले की सबसे प्राचीन मड़ई भी लगती है। जानकारी अनुसार पहले मंदिर परिसर में भगवान विष्णु, रामभक्त हनुमान, महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध, शेर आदि की प्रतमाएं थीं। इनमें से कुछ प्रतिमाएं अभी अमरकंटक संग्रहालय में हैं और कुछ प्रतिमाएं कुकर्रामठ मंदिर के पास ही सुरक्षित रख दी गई हैं। इन प्रतिमाओं को पुन: स्थापित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। इनसे प्रतीत होता है कि इस स्थान पर हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म के मंदिरों का समूह रहा होगा।

 

पुरातत्व विभाग करता है रख-रखाव

वर्तमान में मंदिर के रख-रखाव का कार्य मप्र पुरातत्व विभाग के अधीन है। पुरातत्व विभाग ने प्राचीन स्मारक पुरातत्वीय स्थल सुरक्षा अधिनियम 1958 के तहत मंदिर को संरक्षित स्मारक घोषित किया है। मंदिर के पास ही पुरातत्व विभाग का शिलालेख लगा है, जिसमें मंदिर के इतिहास की जानकारी है। पुरातत्व विभाग की ओर से मंदिर की सुरक्षा के लिए चारों ओर दीवार बनाई गई है। मंदिर के संरक्षण की दिशा में सबसे पहला प्रयास अंग्रेजी हुकूमत के समय 1904 में अंग्रेजों ने किया था। इसके बाद 1971 में भारत सरकार ने एक बार फिर इसकी मरम्मत करवाई। 2010 में भारतीय पुरातत्व विभाग ने मंदिर के चारों ओर की सिक्योरिटी वॉल को और ऊंचा कराया। साथ ही मंदिर के सामने की जगह पर चीप से फ्लोरिंग कराई गई।

 

यह भी है मान्यता

ऐसी भी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान एक ही रात में किया था। शिखर का निर्माण पूर्ण होने से पहले ही सूर्योदय हो जाने के कारण शिखर पूरी तरह नहीं बन पाया। गुंबद की चोटी पर कलश स्थापित करने के लिए एक प्लेटफॉर्म बना है लेकिन कलश की स्थापना सुबह हो जाने के कारण पांडव नहीं कर सके।

सावन महीना का पहला सोमवार होने पर आज शहर के शिवालयों में भोलेनाथ के जयकारे गूंजेंगे। पूरे सावन महीने में भगवान शिव की पूजा अर्चना श्रद्धा के साथ की जाती है। श्रावण मास के प्रथम सोमवार के दिन विशेष महत्व माना जाता है। पहले सावन सोमवार को शोभन योग बन रहा है। गौरतलब है कि भोलेनाथ का प्रिय सावन महीना शुरू हो चुका है। इस महीने के सभी सोमवार को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। सावन सोमवार भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सर्वश्रेष्ठ दिन होते हैं। सावन सोमवार को शोभन योग बनना दुर्लभ संयोग है। इस शुभ योग में पूजा करने से परम सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

 

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सावन सोमवार की पूजा विधि

सावन सोमवार के दिन सुबह जल्दी स्नान करके साफ कपड़े पहन लें। सावन सोमवार का व्रत रखें। व्रती भगवान के सामने हाथ जोड़कर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद घर के मंदिर में पूजा कर रहे हैं तो सभी भगवानों का गंगाजल से स्नान करें। फिर भगवान शिव का जलाभिषेक करें। हो सके तो पंचामृत भी चढ़ाएं। इस दौरान ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करते रहें। इसके बाद भोलेनाथ को सफेद चंदन,अक्षत, सफेद फू ल, बेल पत्र, धतूरा, सुपारी आदि चढ़ाएं शमी के पत्ते भी चढ़ाएं ऐसा करने से शनि दोष दूर होंगे।

 

शिव जी की आरती जरूर करें

भगवान को फल व मिठाइयों का भोग लगाएं, शिव जी को दूध व चावल का भोग लगाना अच्छा माना जाता है। फिर शिव चालीसा का पाठ पढ़ें। सावन सोमवार की कथा पढ़ें या सुनें। आखिर में भगवान शिव की आरती जरूर करें। इसके बाद सभी परिजनों को पूजा का प्रसाद बांटें।

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