-ट्रेनों की रफ्तार बढऩे के साथ सुधरेगी लेटलतीफ होने की समस्स्या -रेलवे प्रणाली प्रारंभ होने के बाद हादसों के कम होने का कर रहा दावा धौलपुर.धौलपुर-झांसी रेलवे सेक्शन जल्द ही ऑटोमैटिक सिग्नल प्रणाली से जुड़ जाएगा। इस प्रणाली के एक्टिव होने के कारण जहां ट्रेनों की रफ्तार बढ़ सकेगी तो वहीं ट्रेन के लेट चलने की दशा में भी सुधार होगा। रेलवे ने प्रणाली को जोडऩे के लिए कार्य प्रारंभ कर दिया है। अभी तक लीवर प्रणाली से टे्रनों को कंट्रोल किया जाता था।
टे्रनों के लेटलतीफी और धीमी रफ्तार की समस्या को दूर करने रेलवे ने कदम बढ़ा दिए हैं। जिसके लिए झांसी और धौलपुर सेक्शन को ऑटोमेटिक सिग्नल प्रणाली से जोड़ा जा रहा है। झांसी मण्डल के करारी से चिरुला और चिरुला से दतिया के बीच रेलवे ट्रैक को ऑटोमैटिक सिग्नल प्रणाली से लैस कर दिया है। इस सिस्टम लगने से अब कई ट्रेन एक ही ट्रैक पर आसानी से चल सकेंगी। तो वहीं धौलपुर से बीना के बीच सेक्शन में यह प्रणाली लगाने पर काम चल रहा है। इस प्रणाली से दुर्घटनाओं की आशंका पूरी तरह से खत्म होने का दावा किया गया है। अभी तक लीवर प्रणाली से ट्रेन को कण्ट्रोल किया जाता था। एक ट्रेन जब तक दूसरे स्टेशन तक नहीं पहुंच जाती थी, स्टेशन मास्टर का सन्देश न मिलने पर ट्रेन को कहीं भी खड़ा कर दिया जाता था। इस प्रणाली से बेधडक़ ट्रेन दौड़तीं नजर आएंगी। जिससे एक ओर जहां टेनों की दशा सुधरेगी तो वहीं हादसों की संख्या में भी गिरावट आएगी।
7 मिनट में चलेगी दूसरी ट्रेन रेलवे अधिकारियों के मुताबिक सिग्नल पद्धति लागू होने के बाद 7 से 8 मिनट के अंतराल में एक ही ट्रेक पर दूसरी ट्रेन आसानी से चल सकेगी। एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन के बीच की दूरी 12 से 15 किलोमीटर तक होती है। पहले गई ट्रेन के पीछे 15 मिनट के बाद दूसरी ट्रेन चलाई जाती है। रेलवे इस समय को कम कर 7 से 8 मिनट करने जा रहा है। बीच के सिग्नल को पार करते ही पीछे से दूसरी ट्रेन चला दी जाएगी। इससे 15 मिनट के स्थान पर 7 से 8 मिनट में ही दूसरी ट्रेन चलाई जा सकती है।
सबसे व्यस्त रूट दिल्ली-मुम्बई रेलवे लाइन देखा जाए तो दिल्ली-मुम्बई रेलवे लाइन से व्यस्त रूटों में से एक है। यहां आगरा खण्ड का कैण्ट स्टेशन प्रमुख स्टेशन है। जहां से कानपुर, इलाहाबाद, मुम्बई, दिल्ली समेत चारों दिशाओं के लिए हर समय ट्रेन का आवागमन होता है। साथ ही इस ट्रैक पर वन्दे भारत, गतिमान एक्सप्रेस, राजधानी समेत शताब्दी एक्सप्रेस भी दौड़ रही है। उसके अनुसार हर 10 मिनट में एक ट्रेन चलती है।
अभी तक यह होता आया है वन्दे भारत, गतिमान एक्सप्रेस, राजधानी समेत शताब्दी एक्सप्रेस जैसी प्रीमियम ट्रेन के लिए तीन स्टेशन तक ट्रैक को खाली रखा जाता है। इस दौरान अन्य मेल-एक्सप्रेस, पैसिंजर और मालगाड़ी को लूप लाइन पर खड़ा करके निकाला जाता है। जब यह ट्रेन अगले स्टेशन पर पहुंच जाती है, फिर अन्य ट्रेन को निकाला जाता है।
सिग्नल प्रणाली पूर्ण रूप से कम्प्यूटराइज्ड जानकारी के मुताबिक ऑटोमेटिक सिग्नल प्रणाली पूरी तरह कम्प्यूटराइज्ड है। स्टेशन यार्ड से लगभग डेढ़ किलोमीटर पर एडवान्स स्टार्टर सिग्नल लगाया गया है। सिग्नल के जरिए ट्रेन स्टेशन यार्ड में प्रवेश करते ही स्टेशन मास्टर को सूचना दे देती है। आटोमेटिक सिग्नल प्रणाली की खासियत यह भी है कि एक ट्रेन दूसरे ट्रेन के पीछे चलती रहती है और यदि कोई तकनीकी खामी आई तो पीछे चल रही ट्रेन को सूचना मिल जाएगी, इससे जो ट्रेन जहां है वहीं पर खड़ी हो जाएगी। इससे दुर्घटना की सम्भावना काफी कम हो जाएगी।
झांसी के करारी से चिरुला और चिरुला से दतिया के अनंत पीठ तक ट्रैक ऑटोमैटिक सिग्नल प्रणाली से लैस कर दिया है। इसमें धौलपुर सेक्शन को भी जल्द जोड़ा जाएगा। मार्च 2026 तक बीना से धौलपुर ट्रैक को ऑटोमैटिक सिग्नल प्रणाली से जोड़ दिया जाएगा। जिससे एक ही टे्रक पर 7 गाडिय़ां आसानी से चल सकेंगी।
-मनोज सिंह, पीआरओ झांसी मण्डल