ऐसी ही एक गुफा देवभूमि उत्तराखंड के गांव भुवनेश्वर में भी स्थित है। दरअसल देवभूमि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में पाताल भुवनेश्वर गुफा तके भक्तों कि असीम आस्था है।
देवभूमि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट के भुवनेश्वर गांव में स्थित यह गुफा है। जो समुद्र तल से 1350 किलोमीटर की ऊंचाई पर है। यह गुफा गंगोलीहाट तहसील से 16 किमी दूर है। पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा किसी आश्चर्य से कम नहीं है। यह गुफा प्रवेश द्वार से करीब 200 मीटर लंबी और 90 फीट गहरी है।
पाताल भुवनेश्वर गुफा की खोज
पौराणिक कथाओं के अनुसार,सर्वप्रथम इस गुफा की खोज त्रेता युग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा ऋतुपर्णा ने की थी। वहीं स्कंदपुराण के अनुसार , पाताल भुवनेश्वर में स्वयं भगवान शिव निवास करते हैं। उसके बाद द्वापर युग में पांडवों द्वारा इस गुफा की खोज मानी जाती है। कहा जाता है कि कलयुग में पांडवो ने यहां चौपड़ का खेल भी खेला था।
पाताल भुवनेश्वर से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार, कलयुग में इसकी खोज जगतगुरु आदि शंकराचार्य ने 822 ई. के आस-पास की थी।
इसके बाद कत्यूरी और चंद राजाओं ने इसे खोजने के पश्चात इसका निर्माण कराया। 2000 में उत्तराखंड बनने के बाद 2007 में से इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है।
गुफा की कहानी -The Story of Patal bhuvaneshvar cave
मान्यता के अनुसार इसी गुफा में भगवान गणेश का कटा हुआ सिर रखा है, जिस पर सहस्त्र दल वाले ब्रह्मकमल से अमृत मिश्रित जल की दिव्य बुंदे गिरती रहती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने क्रोध में आकर गणेश जी का सिर धड से अलग कर दिया था। इस दृश्य को देखकर माता पार्वती क्रोधित हो गयी और उन्हीं के कहने पर भगवान् गणेश के धड पर हाथी का सिर लगाया गया। लेकिन जो सिर उनके शरीर से अलग किया गया था, उसको भगवान् शिव द्वारा इस गुफा में रख दिया गया था। इस गुफा में गणेश जी का कटा हुआ सिर मूर्ति के रूप में स्थापित है इसी शिलारूपी मूर्ति के उपर 108 पंखुड़ियों वाला ब्रह्मकमल है। इस ब्रहमकमल से पानी की दिव्य बूंदे भगवान् गणेश के शिलारूपी मूर्ति पर गिरती है। कहा जाता है कि उस ब्रहमकमल को शिव ने ही स्थापित किया है। वहीं यहां एक पाषाण का हंस भी है, जिसकी गर्दन मुड़ी हुई है, बताया जाता है कि यह हंस अमृत पीने की कोशिश कर रहा था तब देव ने इसे गर्दन टेड़ी हो जाने का श्राप दिया। तभी से इसकी गर्दन टेड़ी बनी हुई है।
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पाताल भुवनेश्वर गुफा के अंदर का रहस्य
इस गुफा में प्रवेश करने के लिए 4 फुट लम्बा, डेढ़ फुट चौड़ा द्वार है। गुफा के अंदर कैमरा और मोबाइल ले जाने की अनुमति नहीं है। नीचे गुफा में उतरने के लिए चट्टानों के बीच संकरे टेढ़ी मेढ़े रास्ते से ढलान पर उतरना पड़ता है। देखने पर गुफा में उतरना नामुमकिन सा लगता है, लेकिन गुफा में उतरने पर शरीर खुद ब खुद गुफा के संकरे रास्ते में अपने लिए जगह बना लेता है। गुफा के अंदर जाने के लिए लोहे की जंजीरों का सहारा लेना पड़ता है यह गुफा पत्थरों से बनी हुई है। इसकी दीवारों से पानी रिस्ता रहता है। जिसके कारण यहां के जाने का रास्ता बेहद चिकना है।
स्कंद पुराण के अनुसार गुफा में शेष नाग के आकर का पत्थर है, उन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे उन्होंने पृथ्वी को पकड़ रखा है। संकरे रास्ते से होते हुए इस गुफा में प्रवेश किया जा सकता है। जमीन के अंदर लगभग 8 से 10 फीट नीचे जाने पर गुफा की दीवारों पर हैरान कर देने वाली आकृतियां नजर आने लगती हैं। गुफा के ऊपर से नीचे की ओर आती शिवजी की विशाल जटाओं के साथ ही 33 कोटी देवी देवताओं के दर्शन भी इस स्थान पर होते हैं। शिव की जटाओं से बहती गंगा का अदभुत दृश्य यहां मन को मोह लेता है।
गुफा में चार कदम आगे बढ़ने पर पाताल भुवनेश्वर- ब्रह्मा, विष्णु और महेश के एक साथ दर्शन होते हैं। इस गुफा के अंदर केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के भी दर्शन होते है। बद्रीनाथ में बद्री पंचायत की शिलारूप मूर्तियां हैं। जिनमें यम-कुबेर, वरुण, लक्ष्मी, गणेश तथा गरूड़ शामिल हैं। तक्षक नाग की आकृति भी बनी चट्टान में नजर आती है। इन सब के ऊपर बाबा अमरनाथ की गुफा है तथा पत्थर की बड़ी- बड़ी जटाएं फैली हुई हैं। इसी गुफा में काल भैरव जीभ के दर्शन होते हैं। धार्मिक मान्यता है कि मनुष्य कालभैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
गुफा में आगे बढ़ने पर समुद्र मंथन से निकला परिजात का पेड़ नज़र आता है, तो ब्रह्मा जी का पांचवे मस्तक के दर्शन भी यहां पर होते हैं। गुफा के दाहिनी ओर इसके ठीक सामने ब्रह्मकपाल और सप्तजलकुंड के दर्शन होते हैं जिसकी बगल में टेढ़ी गर्दन वाले एक हंस की आकृति दिखाई देती है। मानस खंड में वर्णन है कि हंस को कुंड में मौजूद अमृत की रक्षा करने का कार्य दिया गया था, लेकिन लालच में आकर हंस ने खुद ही अमृत को पीने की चेष्टा की जिससे शिव जी के श्राप के चलते हंस की गर्द हमेशा के लिए टेढ़ी हो गयी।
कुल मिलाकर करीब 200 मीटर लंबी पाताल भुवनेश्वर गुफा एक ऐसा स्थान है जहां पर एक ही स्थान पर न सिर्फ 33 कोटी देवताओं का वास है बल्कि इस गुफा के दर्शन से चारों धाम- जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम, द्वारिका पुरी और बद्रीनाथ धाम के दर्शन पूर्ण हो जाते हैं। पाताल भुवनेश्वर गुफा का विस्तृत वर्णन स्कन्द पुराण के मानस खंड के 103 अध्याय में मिलता है। पाताल भुवनेश्वर अपने आप में एक दैवीय संसार को समेटे हुए है।
पाताल भुवनेश्वर गुफा में है कलयुग के अंत का रहस्य –
इस गुफा में चारों युगों के प्रतीक रूप में 4 पत्थर स्थापित है (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग) इन चार पत्थरों को चार द्वारों का रूप माना गया है, जिनके नाम क्रमशः मोक्ष द्वार, पाप द्वार, रण द्वार, धर्म द्वार है। जिसमें से तीन युगों के प्रतीक तीन द्वार बंद हो चुके हैं। इनमें से धर्म द्वार जिसे कलयुग का प्रतीक माना जाता है। इस पत्थर की सबसे खास बात तो यह है कि ये पत्थर लगातार धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है। इस घुफा के पत्थर को लेकर यह मान्यता है कि जब यह पत्थर गुफा की छत को छू लेगा यह माना जाता है कि उस दिन कलयुग का अंत हो जाएगा।
ये भी है खास—
गुफ़ा में घुसते ही शुरुआत में (पाताल के प्रथम तल) नरसिम्हा भगवान के दर्शन होते हैं। कुछ नीचे जाते ही शेषनाग के फनों की तरह उभरी संरचना पत्थरों पर नज़र आती है। मान्यता है कि धरती इसी पर टिकी है।
आगे बढने पर एक छोटा सा हवन कुंड दिखता है। माना जाता है कि राजा परीक्षित को मिले श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए उनके पुत्र जन्मेजय ने इसी कुण्ड में सभी नागों को जला डाला, परंतु तक्षक नाम का एक नाग बच निकला जिसने बदला लेते हुए परीक्षित को मौत के घाट उतार दिया। हवन कुण्ड के ऊपर इसी तक्षक नाग की आकृति बनी है।
हवन कुण्ड के आगे गुफ़ा की मौन तन्द्रा को भंग कर पुजारी की आवाज़ गूंजती है कि आप शेष नाग के शरीर की हड्डियों पर खड़े हैं और आपके सिर के उपर शेष नाग का फ़न है तो आपको कुछ समझ नहीं आयेगा, परन्तु जैसे ही उस गुफ़ा के चट्टानी पत्थरों पर गहन दृष्टिपात करें तो आपके शरीर में सिरहन सी दौड़ेगी और आप वास्तव में अनुभव करेगें की कुदरत द्वारा तराशे पत्थरों में नाग फ़न फैलाएं हैं।
स्वर्ग से समागत ऐरावत हाथी का शरीर उन चट्टानों में शायद न दिखे पर ज़मीन में बिल्कुल झुक कर भूमि से चन्द ईचों की दूरी पर चट्टानों में हाथी के तराशे हुए पैरों को देख कर आपको मानना ही पड़ेगा कि ईश्वर (विश्वकर्मा) के अलावा कोई भी मूर्तिकार इन पैरों को नहीं घड़ सकता है।
शेषनाग के शरीर पर (हड्डियों) पर चल कर गुफ़ा के मध्य तक जाया जा सकता है जहां शिव ने गणेश (गणेशजी की मूर्ति) का सिर काट कर रख दिया था। उनके ऊपर गुफ़ा की छत में चट्टान से बना कमल का फूल है, जिससे पानी टपकते हुए मूर्ति पर पड़ता है। भगवान शंकर की लीला स्थली होने के कारण उनकी विशाल जटांए इन पत्थरों पर नजर आती हैं। शिव जी की तपस्या के कमण्डल, खाल सब नजर आते हैं।
गुफ़ाओं के अन्दर बढ़ते हुए गुफ़ा की छत से गाय की एक थन की आकृति नजर आती है। ये कामधेनु गाय का स्तन है जिससे वृषभेश के ऊपर सतत दुग्ध धारा बहती है। कलियुग में अब दूध के बदले इससे पानी टपक रहा है।
आगे जाकर एक टेड़ी गर्दन वाले हंस की मूर्ति है। ब्रह्मा के इस हंस को शिव ने घायल कर दिया था, क्योंकि उसने वहां रखा अमृत कुंड जुठा कर दिया था।
ब्रह्मा, विष्णु व महेश की मूर्तियां साथ-साथ स्थापित हैं। पर्यटक आश्चर्यचकित होता है कि जब छत के उपर एक ही छेद से क्रमवार पहले ब्रह्मा फिर विष्णु फिर महेश की इन मूर्तियों पर पानी टपकता रहता है, और फिर यही क्रम दोबारा से शुरू हो जाता है।
एक स्थान पर यहां चार प्रस्तर खण्ड हैं जो चार युगों अर्थात सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग को दर्शाते हैं। इनमें पहले तीन आकारों में कोई परिवर्तन नहीं होता। जबकि कलियुग का पिंड लम्बाई में अधिक है और उसके ठीक ऊपर गुफ़ा से लटका एक पिंड नीचे की ओर लटक रहा है और इनके मध्य की दूरी पुजारी के कथानुसार 7 करोड़ वर्षों में 1 इंच बढ़ती है और पुजारी का कथन सत्य मानें तो दोनों पिंडों के मिल जाने पर कलियुग समाप्त हो जाएगा।
पाताल भुवनेश्वर गुफा कैसे पहुंचे
पाताल भुवनेश्वर जाने के कई रास्ते हैं। यहां जाने के लिए ट्रेन से काठगोदाम या टनकपुर जाना होगा। उसके आगे सड़क के रास्ते ही सफर करना होगा। आप अल्मोड़ा से गंगोलीहाट शेराघाट, या बागेश्वर, या दन्या होते जा सकते हैं। वहीं टनकपुर,पिथौरागढ़ से भी गंगोलीहाट जा सकते हैं। दिल्ली से बस द्वारा 350 किमी यात्रा कर आप अल्मोड़ा पहुंच कर विश्राम कर सकते है और वहां से अगले दिन आगे की यात्रा जारी रख सकते हैं। रेलवे द्वारा यात्रा करनी हो तो काठगोदाम अंतिम रेलवे स्टेशन है वहां से आपको बस या प्राइवेट वाहन बागेश्वर, अल्मोड़ा के लिए मिलते रहते हैं।
वहीं पाताल भुवनेश्वर के लिए काठगोदाम से टैक्सी द्वारा अल्मोड़ा पहुंच कर अल्मोड़ा से पाताल भुवनेश्वर गुफा जा सकते हैं। अल्मोड़ा से पाताल भुवनेश्वर की दूरी – अल्मोड़ा बेरीनाग मार्ग होते हुए 110 किमी है। अल्मोड़ा से पाताल भुवनेश्वर जाने में आपको लगभग 4 घंटे का समय लग सकता है।
यदि आप हवाई मार्ग से आना चाहते हैं, तो पाताल भुवनेश्वर का निकटतम हवाई अड्डा नैनी सैनी अड्डा पिथौरागढ़ है या पंतनगर हवाई अड्डा है। वहां से सड़क मार्ग द्वारा भी आप यहां पहुंच सकते हैं। पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से पाताल भुवनेश्वर की दूरी लगभग 90 किमी है।