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Vat Savitri Vrat: आज है वट सावित्री व्रत, जानें वट सावित्री व्रत का महत्व, पूजा विधि और मंत्र

When Vat Savitri Vrat 2024 हर साल ज्येष्ठ अमावस्या पर महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए वट सावित्री व्रत रखती हैं। इस साल वट सावित्री व्रत कब पड़ेगा। इस वट सावित्री व्रत का महत्व और पूजा विधि और मंत्र क्या है…

भोपालJun 06, 2024 / 11:36 am

Pravin Pandey

वट सावित्री व्रत 2024

वट सावित्री व्रत कब है

अमावस्या तिथि प्रारंभः 05 जून 2024 को शाम 07:54 बजे
अमावस्या तिथि समाप्तः 06 जून 2024 को शाम 06:07 बजे तक
वट सावित्री अमावस्याः बृहस्पतिवार 6 जून 2024
वट सावित्री पूर्णिमा व्रतः शुक्रवार 21 जून 2024

वट सावित्री व्रत 2024

पौराणिक कथाओं के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या के दिन सावित्री ने मृत्यु के देवता भगवान यम को भ्रमित कर उन्हें अपने पति सत्यवान के प्राण को लौटाने पर विवश किया था। इसीलिए विवाहित स्त्रियां अपने पति की सकुशलता और दीर्घायु की कामना से वट सावित्री व्रत रखती हैं और सावित्री के लौटने तक उनके पति सत्यवान के शरीर की रक्षा करने वाले वट वृक्ष की इस दिन पूजा की जाती है।

इसके अलावा सनातन धर्म के अनुसार बरगद के पेड़ में त्रिदेवों का वास होता है। बरगद की जड़ में ब्रह्माजी, तने में विष्णुजी और शाखाओं में शिवजी का वास माना जाता है। इसके अलावा वट वृक्ष सनातन धर्म में पवित्र, लंबे समय ता जीवंत रहने वाला होता है। दीर्घ आयु, शक्ति और इस वृक्ष के धार्मिक महत्व के चलते ही वट सावित्री व्रत के दिन वट वृक्ष की पूजा की जाती है।
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उत्तर भारत- दक्षिण भारत में अलग-अलग दिन व्रत

पूर्णिमांत कैलेंडर में वट सावित्री व्रत, ज्येष्ठ अमावस्या पर मनाया जाता है। इसी दिन शनि जयंती भी होती है। वहीं अमांत कैलेंडर के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा पर मनाया जाता है। वट सावित्री व्रत को वट पूर्णिमा व्रत भी कहा जाता है। इसीलिए महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिणी भारतीय राज्यों में विवाहित स्त्रियां उत्तर भारतीय स्त्रियों की तुलना में 15 दिन बाद वट सावित्री व्रत मनाती हैं। यद्यपि व्रत पालन करने के पीछे की पौराणिक कथा दोनों ही कैलेंडरों में एक समान है।

आसान वट सावित्री व्रत पूजा विधि (Vat Savitri Vrat Puja Vidhi)

  1. ज्येष्ठ अमावस्या के दिन यानी वट सावित्री व्रत के दिन सुबह घर की साफ-सफाई और नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें और गंगाजल का पूरे घर में छिड़काव करें।
  2. बरगद के पेड़ के नीचे बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्माजी, सत्यवान, सावित्री और यमराज की प्रतिमा की स्थापना करें।
  3. इसके बाद ये मंत्र पढ़ते हुए
    अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।
    पुत्रान्‌ पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते।।
    वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें।
  4. इसके बाद ये मंत्र पढ़ें, और फूल-धूप जल, मौली, रोली, भिगोया चना मिठाई से पूजा करें।
    यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले।
    तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मा सदा।।
  5. इसके बाद वट सावित्री व्रत में 7 या 11 बार वट वृक्ष की परिक्रमा करनी चाहिए और इस दौरान बरगद के पेड़ के चारों तरफ कच्चा सूत लपेटते जाना चाहिए।
  6. वट सावित्री व्रत के दिन पूजा के समय हाथ में भीगा चना लेकर, बड़ के पत्तों के गहने पहनकर सत्यवान सावित्री की कथा भी सुननी चाहिए।
  7. पूजा के बाद भीगा चना, वस्त्र, दक्षिणा सास को देकर पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए।
  8. वट और सावित्री की पूजा के बाद पान, सिंदूर और कुमकुम से सौभाग्यवती स्त्री के पूजन का भी विधान है। यही सौभाग्य पिटारी के नाम से जानी जाती है। सौभाग्यवती स्त्रियों का भी पूजन होता है। कुछ महिलाएं केवल अमावस्या को एक दिन का ही व्रत रखती हैं।
  9. आखिर में यह मंत्र बोलते हुए वट वृक्ष की कोपल खाकर उपवास खोलें।
    मम वैधव्यादिसकलदोषपरिहारार्थं ब्रह्मसावित्रीप्रीत्यर्थं
    सत्यवत्सावित्रीप्रीत्यर्थं च वटसावित्रीव्रतमहं करिष्ये।
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