ऐसे में चातुर्मास के अंतर्गत आने वाले भाद्रप्रद का पहला प्रदोष व्रत शनिवार, 4 सितंबर 2021 को पड़ रहा है। शनिवार को पड़ने के कारण ये प्रदोष शनि प्रदोष कहलाएगा। ऐसे में जहां चातुर्मास में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है, वहीं शनिवार के दिन शनि की भी पूजा की जाएगी।
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार शनि के गुरु भगवान शिव ही हैं, और उनके साथ अपनी पूजा से शनि देव अत्यंत प्रसन्न होते हैं। ऐसे में कुल मिलाकर जानकारों के अनुसार भाद्रप्रद का यह पहला प्रदोष शनि से प्रभावित लोगों के लिए बेहद खास रह सकता है।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार हिंदू धर्म में त्रयोदशी का दिन भगवान शिव को समर्पित माना गया है। ऐसे में त्रयोदशी के दिन भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती की भी पूजा-अर्चना की जाती है। वहीं हर त्रियोदशी तिथि को प्रदोष व्रत होता है, जबकि त्रयोदशी तिथि हर माह में दो यानि एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में आती हैं।
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वर्तमान में भाद्रपद का कृष्ण पक्ष होने के चलते 4 सितबंर को पड़ने वाली त्रयोदशी तिथि कृष्ण पक्ष की रहेगी, वहीं इस दिन प्रदोष व्रत किया जाएगा। आइए जानते हैं इस प्रदोष व्रत की तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि को-हिंदू पंचाग के अनुसार भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की इस तिथि की शुरुआत 4 सितंबर को 8:24 AM पर होगी, जबकि इस तिथि का समापन रविवार, 5 सितंबर को 8:21 AM पर होगा। वहीं हिंदू कैलेंडर के छठे माह भाद्रपद का यह पहला प्रदोष होगा।
पंडित शर्मा के अनुसार प्रदोष व्रत की पूजा शुरु करने से पहले ही पूजन सामग्री एकत्रित कर लेना चाहिए, क्योंकि कई बार कुछ चीजें समय पर नहीं मिल पातीं जिससे पूजा में वे चीजें रह जाती है, दूसरा ये कि पूजा से पूजन सामग्री लाने के नाम पर ही उठना अनुचित माना जाता है।
प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित माना जाता है, ऐसे में इस समय भगवान शिव की ही पूजा की जाती है। इस दिन की पूजा विधि के अनुसार व्रती ब्रह्ममुहूर्त में इस दिन उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनने चाहिए और इसके बाद घर के मंदिर में दीपक जलाना चाहिए। जो लोग व्रत करते हैं उन्हें इस समय व्रत का संकल्प भी लेना चाहिए।