धर्म-कर्म

Shiv Pradosh Vrat 2021: भाद्रपद में भगवान शिव की पूजा और पहला प्रदोष

चातुर्मास में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व

Aug 31, 2021 / 01:45 pm

दीपेश तिवारी

September 2021 first pradosh

हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस साल 23 अगस्त से भाद्रप्रद माह की शुरुआत हो चुकी है। हिंदुओं का यह 6ठां माह यानि भाद्रप्रद चातुर्मास का ही एक माह होता है। इस चातुर्मास में जहां भगवान विष्णु योगनिद्रा में होते हैं, वहीं इस दौरान सम्पूर्ण ब्रह्माण का भार भगवान शिव के कंधों में रहता है। ऐसे में ये चातुर्मास भगवान शिव की उपासना के लिए बेहद खासविशेष माना जाता है।

ऐसे में चातुर्मास के अंतर्गत आने वाले भाद्रप्रद का पहला प्रदोष व्रत शनिवार, 4 सितंबर 2021 को पड़ रहा है। शनिवार को पड़ने के कारण ये प्रदोष शनि प्रदोष कहलाएगा। ऐसे में जहां चातुर्मास में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है, वहीं शनिवार के दिन शनि की भी पूजा की जाएगी।

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हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार शनि के गुरु भगवान शिव ही हैं, और उनके साथ अपनी पूजा से शनि देव अत्यंत प्रसन्न होते हैं। ऐसे में कुल मिलाकर जानकारों के अनुसार भाद्रप्रद का यह पहला प्रदोष शनि से प्रभावित लोगों के लिए बेहद खास रह सकता है।

पंडित सुनील शर्मा के अनुसार हिंदू धर्म में त्रयोदशी का दिन भगवान शिव को समर्पित माना गया है। ऐसे में त्रयोदशी के दिन भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती की भी पूजा-अर्चना की जाती है। वहीं हर त्रियोदशी तिथि को प्रदोष व्रत होता है, जबकि त्रयोदशी तिथि हर माह में दो यानि एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में आती हैं।

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Shiv pujan
वर्तमान में भाद्रपद का कृष्ण पक्ष होने के चलते 4 सितबंर को पड़ने वाली त्रयोदशी तिथि कृष्ण पक्ष की रहेगी, वहीं इस दिन प्रदोष व्रत किया जाएगा। आइए जानते हैं इस प्रदोष व्रत की तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि को-
त्रियोदशी तिथि: कब से कब तक?
हिंदू पंचाग के अनुसार भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की इस तिथि की शुरुआत 4 सितंबर को 8:24 AM पर होगी, जबकि इस तिथि का समापन रविवार, 5 सितंबर को 8:21 AM पर होगा। वहीं हिंदू कैलेंडर के छठे माह भाद्रपद का यह पहला प्रदोष होगा।
इस दौरान प्रदोष व्रत रखा जाएगा, यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में ही होती है, और प्रदोष काल उस समय को कहते है जब सूर्यास्त काफी निकट होता है, वहीं कुछ जानकारों के अनुसार यह सूर्यास्त से 45 मिनट पहले से शुरू हो जाता है। ऐसे में इस समय ही इस व्रत की पूजा किए जाने का नियम है। वहीं इस बार इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त 2 घंटे 15 मिनट व 12 सेंकेड का है।
प्रदोष पूजा में ये चीजें हैं महत्वपूर्ण
पंडित शर्मा के अनुसार प्रदोष व्रत की पूजा शुरु करने से पहले ही पूजन सामग्री एकत्रित कर लेना चाहिए, क्योंकि कई बार कुछ चीजें समय पर नहीं मिल पातीं जिससे पूजा में वे चीजें रह जाती है, दूसरा ये कि पूजा से पूजन सामग्री लाने के नाम पर ही उठना अनुचित माना जाता है।
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अत: पूजा से पहले ही एक थाली में चंदन, कपूर, जनेऊ, बिल्वपत्र, धतूरा, फूल, अबीर, फल, गुलाल, अगरबत्ती, अक्षत, कलावा आदि रख लें। अब पूरे समय भगवान शिव के समक्ष ही उपस्थित रहकर अपना पूरा ध्यान पूजन में ही लगाएं और भगवान की अराधना करते रहें।
प्रदोष व्रत पूजा विधि
प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित माना जाता है, ऐसे में इस समय भगवान शिव की ही पूजा की जाती है। इस दिन की पूजा विधि के अनुसार व्रती ब्रह्ममुहूर्त में इस दिन उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनने चाहिए और इसके बाद घर के मंदिर में दीपक जलाना चाहिए। जो लोग व्रत करते हैं उन्हें इस समय व्रत का संकल्प भी लेना चाहिए।
वहीं यह सब करने के बाद भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक करके उन्हें पुष्प अर्पित करने चाहिए। इसके बाद शिव परिवार की पूजा करनी चाहिए, यहां ये बता दें कि भगवान शिव माता पार्वती की पूजा से भी अत्यंत प्रसन्न होते है, ऐसे में शिव पूजा से पहले माता पार्वती की पूजा को विशेष माना जाता है।
इस दिन श्री गणेश जी की भी पूजा इनके साथ अवश्य करें। वहीं शिव परिवार की पूजा के बाद उनहें सात्विक भोजन का भोग लगाएं और फिर पुन: शिवजी की आरती करें। व्रत के दिन भगवान शिव के मंत्रों का जाप और उनका ध्यान ज्यादा से ज्यादा करें।

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