मान्यताओं के अनुसार, मां दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए चार चीजें बहुत जरूरी है। इनके बिना मां दुर्गा की मूर्ति का निर्माण नहीं हो सकता है। गंगा तट की मिट्टी, गौमूत्र, गोबर और तवायफ के कोठे की मिट्टी का इस्तेमाल मां दुर्गा की मूर्ति के निर्माण में किया जाता है। अगर इन चार चीजों का इस्तेमाल नहीं किया गया है तो मूर्ति निर्माण पूर्ण नहीं मानी जाती है।
तवायफ के कोठे की मिट्टी क्यों हमारे समाज में तवायफ का नाम सुनते ही कई तरह के सवाल उठने लगते हैं। लोग बहुत कुछ सोचने लगते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि मां दुर्गा की मूर्ति के निर्माण में उसके आंगन की मिट्टी का इस्तेमाल क्यों किया जाता है? दरअसल, इसके इस्तेमाल के पीछे कई कारण है…
पहला कारण: मान्यता है कि जब भी कोई तवायफ के घर जाता है तो घर में जाने से पहले अपनी पवित्रता द्वार पर ही छोड़ जाता है। अर्थात उसके अच्छे कर्म और शुद्धता बाहर ही रह जाती है। इसका अर्थ ये हुआ कि तवायफ के आंगन की मिट्टी सबसे पवित्र हुई।
दूसरा कारण: तवायफ को समाज में सबसे निकृष्ट का दर्जा दिया गया है, जबकि उसके घर की मिट्टी को पवित्र माना जाता है। यही कारण है कि उसके आंगन कि मिट्टी मां दुर्गा की मूर्ति के निर्माण में प्रयोग किया जाता है।
तीसरा कारण: उनके बुरे कर्मों से मुक्ति दिलवाने के लिए उनके आंगन की मिट्टी का प्रयोग होता है ताकि मंत्रजाप के जरिए उनके बुरे कर्मों से मुक्ति दिलाया जा सके।
चौथा कारण: दरअसल, तवायफों को सामाजिक रूप से अलग कर दिया जाता है लेकिन इसके माध्यम से मुख्य धारा में शामिल करने की कोशिश की जाती है और नवरात्रि में देवी दुर्गा की मूर्ति निर्माण के लिए उनके घर जाकर मिट्टी लाई जाती है।