धर्म-कर्म

देवता, मनुष्य या हो असुर इस स्तुति से प्रसन्न होकर सारे अपराध क्षमा कर देती है माँ दुर्गा

Shardiya Navratri 2019 : Durga Devi Stuti Paath, नवरात्रि काल में माता की इस स्तुति का पाठ श्रद्धा पूर्वक किया जाएं तो माँ दुर्गा प्रसन्न होकर उनके सभी अपराधों को क्षमा कर देती है।

Sep 30, 2019 / 12:54 pm

Shyam

देवता, मनुष्य या हो असुर इस स्तुति से प्रसन्न होकर सारे अपराध क्षमा कर देती है माँ दुर्गा

29 सितंबर से शारदीय नवरात्र महापर्व शुरू हो चूका है। जो 7 अक्टूबर 2019 तक चलेगा। नवरात्रि काल में भक्त तरह-तरह से माता की पूजा-अर्चना करते हैं। देवी पुराण में कहा गया है कि अगर किसी देवता, मनुष्य या फिर किसी असुर से जाने-अंजाने में कोई अपराध कर्म हो जाते हैं तो उसके प्रायश्चि के लिए अगर नवरात्रि काल में माता की इस स्तुति का पाठ श्रद्धा पूर्वक किया जाएं तो माँ दुर्गा प्रसन्न होकर उनके सभी अपराधों को क्षमा कर देती है।

 

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।। अथ अपराध क्षमा स्तुति पाठ ।।

न मंत्रं नोयंत्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम्॥
विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत्।
तदेतत्क्षतव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति॥

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः।
मदीयोऽयंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति॥
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया।
तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदप कुमाता न भवति॥

 

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परित्यक्तादेवा विविधविधिसेवाकुलतया
मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि।
इदानीं चेन्मातस्तव कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदर जननि कं यामि शरण्॥
श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकैः।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ॥
चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतहारी पशुपतिः।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम्॥

न मोक्षस्याकांक्षा भवविभव वांछापिचनमे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडाणी रुद्राणी शिवशिव भवानीति जपतः॥
नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रूक्षचिंतन परैर्नकृतं वचोभिः।
श्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव॥
आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति॥

 

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जगदंब विचित्रमत्र किं परिपूर्ण करुणास्ति चिन्मयि।
अपराधपरंपरावृतं नहि मातासमुपेक्षते सुतम्॥
मत्समः पातकी नास्तिपापघ्नी त्वत्समा नहि।
वं ज्ञात्वा महादेवियथायोग्यं तथा कुरु॥

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