शबरी की कथाः धार्मिक ग्रंथों के अनुसार शबरी का नाम श्रमणा था, इनका जन्म शबरी परिवार में हुआ था और भगवान श्रीराम की बड़ी भक्त थीं। एक कथा के अनुसार जब विवाह योग्य हुईं तो इनका विवाह भील कुमार से तय कर दिया गया, उस समय इस समाज में विवाह में जानवरों की बलि की प्रथा थी, माता ने इसका विरोध किया और विवाह नहीं किया। वहीं एक अन्य कथा के अनुसार पति के अत्याचार से तंग आकर वन चली आती हैं और पूजा अर्चना में लगी रहती हैं। बाद में भगवान श्रीराम से इनकी मुलाकात हुई।
कथा के अनुसार जब श्रीराम शबरी से मिले थे, उस समय माता शबरी के पास श्रीराम के स्वागते के लिए बेर ही थी। लेकिन उन्हें शंका थी कि कहीं बेर खट्टे न निकल जाएं, इसलिए माता शबरी भगवान को अपनी कुटिया में बैठाकर पहले बेर खाती थी और मीठा होने पर बचा हिस्सा भगवान को खिलाती थी, जिसे भगवान श्रीराम चाव से खा रहे थे। भगवान और भक्त की यह प्रेम भावना अकल्पनीय थी। इसी पवित्र प्रेम की याद में हर साल इस दिन शबरी जयंती मनाई जाती है।
1. ब्रह्म मुहूर्त में उठकर माता शबरी और भगवान श्रीराम का स्मरण करें।
2. इसके बाद दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर स्नान के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें।
3. व्रत का संकल्प लें और श्रीराम के साथ शबरी की पूजा करें।
4. फल फूल दूर्वा सिंदूर, अक्षत चढ़ाएं और धूप, दीप अगरबत्ती जलाएं।
5. आरती करें और परिवार की सलामती के लिए प्रार्थना करें।
6. पूरे दिन व्रत रखकर शाम को आरती करें, इसके बाद फलाहार ग्रहण करें।
7. अगले दिन नियमित पूजा के बाद पारण करें।