लेकिन हम आपको एक ऐसा घाट बता रहे हैैं जो की मुर्दों से टैक्स वसूलता है। यहां आए मुर्दों को अंतिम संस्कार के लिए कीमत चुकानी पड़ती है। जी हां यह घाट बनारस में है और बनारस का ये घाट दुनिया का इकलौता ऐसा घाट है जहां पर हमेशा चिता जलती रहती है, कभी ठंडी नहीं होती चिता की आग। बनारस के श्मशान घाट में इस अजीबो-गरीब रस्म के पीछे एक बहुत ही रौचक कहानी है। आइए जनते हैं क्या है वो कहानी जिसके बाद यह रस्म अब तक नीभाई जा रही है…
ये है कहानी
हरीशचंद्र घाट पर अंतिम संस्कार की कीमत चुकाने की यह परंपरा करीब 3000 साल पुरानी है। माना जाता है कि श्मशान के रख रखाव का जिम्मा तभी से डोम जाति के हाथ था। दरअसल टैक्स वसूलने के मौजूदा दौर की शुरुआत हुई राजा हरीशचंद्र के जमाने से। हरीशचंद्र ने एक वचन के तहत अपना राजपाट छोड़ कर डोम परिवार के पूर्वज कल्लू डोम की नौकरी की थी। इसी बीच उनके बेटे की मौत हो गई और बेटे के दाह संस्कार के लिए उन्हें मजबूरन कल्लू डोम की इजाजत मांगनी पड़ी। चूंकि बिना दान दिए तब भी अंतिम संस्कार की इजाज़त नहीं थी, इसलिए राजा हरीशचंद्र को अपनी पत्नी की साड़ी का एक टुकड़ा दक्षिणा के तौर पर कल्लू डोम को देना पड़ा। उसी के बाद से शवदाह के बदले टैक्स मांगने की परंपरा शुरु हो गई और जो की आज तक नीभाई जा रही है।