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Ravi Pradosh Vrat: रवि प्रदोष व्रत का मिलता है यह फल, जानिए क्या है कथा

जिस तरह एकादशी की तिथि भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है, उसी तरह त्रयोदशी तिथि भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित है। यह तिथि जिस वार को पड़ती है, उसे के नाम से जाना जाता है। विद्वानों का कहना है कि हिंदू धर्म मानने वाले व्यक्तियों को एकादशी और त्रयोदशी में से किसी एक व्रत को जरूर रखना चाहिए, अब जब 19 मार्च को रवि प्रदोष व्रत है तो आइये बताते हैं इसके फायदे क्या हैं और रवि प्रदोष व्रत कथा (ravi pradosh vrat katha) क्या है।

Mar 18, 2023 / 05:35 pm

Pravin Pandey

रवि प्रदोष व्रत कथा

रवि प्रदोष व्रत मुहूर्तः पंचांग के अनुसार त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 19 मार्च को सुबह 8.07 बजे से हो रही है और यह अगले दिन 20 मार्च को 4.55 बजे संपन्न होगी। लेकिन भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल (सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और 45 मिनट बाद के समय के बीच) में 19 मार्च को ही मिलने से इसी दिन रविवार को प्रदोष व्रत रखा जाएगा। 19 मार्च को प्रदोष व्रत पूजा का मुहूर्त शाम 6.31 बजे से रात 8.54 बजे के बीच की जाएगी।

यह है रवि प्रदोष व्रत का फल

1. नियम पूर्वक रवि प्रदोष व्रत रखने से व्रतधारी को भगवान शिव, आदिशक्ति पार्वती और भगवान सूर्य तीनों की कृपा प्राप्त होती है। इसके चलते यह व्रत रखने वाले व्यक्ति को लंबी आयु, सुख शांति के साथ आरोग्य की भी प्राप्ति होती है।

2. रवि प्रदोष का संबंध सूर्य से होता है, इसलिए इस व्रत को रखने से साधक के जीवन में चंद्रमा के साथ सूर्य भी सक्रिय रहते हैं और शुभ फल देते हैं। भले ही वह साधक की कुंडली में खराब स्थिति में हों, ग्रहों के राजा सूर्य की पूजा के दिन आदिदेव की पूजा (रवि प्रदोष व्रत पूजा) से ग्रहों के स्वामी सूर्य से संबंधित सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।

3. अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में अपयश का योग हो तो उसे यह प्रदोष व्रत जरूर रखना चाहिए। रवि प्रदोष व्रत सूर्य से संबंधित है, इस कारण यह व्रत रखने वाले व्यक्ति को नाम और यश मिलता है।
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4. धार्मिक ग्रंथों में बार-बार कहा गया है कि जो व्यक्ति प्रदोष व्रत रखता है, वह संकट में नहीं घिरता और उसके जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है।

5. कोई भी व्यक्ति 1 साल या 11 साल के सभी त्रयोदशी व्रत रखता है तो उसकी समस्त मनोकामना की पूर्ति होती है। इसमें भी रवि प्रदोष, भौम प्रदोष और शनि प्रदोष व्रत सबसे महत्वपूर्ण है। इसको पूरा करने से अतिशीघ्र कार्यसिद्धि होती है, और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
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रवि प्रदोष व्रत की कथा

एक समय ऋषियों ने गंगा नदी किनारे एक गोष्ठी का आयोजन किया, इसमें शामिल होने व्यासजी के शिष्य सूतजी पहुंचे तो आदर के बाद ऋषियों ने उनसे पूछा कि प्रदोष व्रत सबसे पहले किसने किया और क्या फल मिला। इस पर सूतजी ने बताया कि गरीब ब्राह्मण था, उसकी पत्नी प्रदोष व्रत रखती थी। उसको एक पुत्र था, जो गंगा स्नान के लिए गया तो चोरों ने घेर लिया और कहा कि पिता का गुप्त धन कहां रखा है बता दो नहीं तो तुम्हें मार डालेंगे। ब्राह्मण का बेटा बहुत गिड़गिड़ाया लेकिन वो नहीं माने।

चोरों ने कहा कि तुम्हारी पोटली में क्या है, उसने बताया कि मां ने इसमें रोटियां दी हैं। इस पर चोरों ने उसे जाने दिया, बच्चा नगर में पहुंचा। बालक वहां से एक नगर में पहुंचा और एक बरगद के पेड़ के नीचे सो गया तभी सिपाही पहुंचे और चोर समझकर पकड़ लिया और राजा के पास ले गए। यहां राजा ने उसे कारावास में बंद करा दिया। इधर, बेटा घर नहीं पहुंचा तो ब्राह्मणी को चिंता हुई, उसने भगवान शिव से बेटे की कुशलता की प्रार्थना की। इस पर भगवान शिव ने राजा को स्वप्न दिया कि बच्चा चोर नहीं है, उसे छोड़ दें वर्ना उसका राज्य वैभव नष्ट हो जाएगा।
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इस पर राजा ने बालक को मुक्त कर दिया। साथ ही बालक ने वृत्तांत सुनाया तो उसके माता पिता को बुलाया। वे डरते राज्य में पहुंचे तो राजा ने उन्हें पांच गांव दान दे दिया और ब्राह्मण परिवार सुखी जीवन जीने लगा।

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