धर्म-कर्म

नवग्रहों के दुष्प्रभाव से बचाता है यह दुर्गा मंत्र, जानें कैसे करें इस अमोघ मंत्र का जाप

Navarna Mantra: नवग्रह जब सक्रिय होकर लोगों पर दुष्प्रभाव डालते हैं तो इनसे बचाने वाली शक्ति दुर्गाजी ही हैं। इनका सिर्फ एक नव अक्षरीय अमोष मंत्र, जिसे नवार्ण मंत्र के रूप में जाना जाता है, दुष्ट शक्तियों से हमारी रक्षा कर सकता है। शारदीय नवरात्रि के समय जब ब्रह्मांड में ग्रह अधिक सक्रिय होकर दुष्प्रभाव डालते हैं तब इस मंत्र से दुर्गा पूजा कर रक्षा का वरदान पाना सबसे महत्वपूर्ण होता है। आइये जानते हैं नवार्ण मंत्र का जाप कैसे करें..

जयपुरDec 09, 2024 / 05:06 pm

Pravin Pandey

navarna mantra sadhana vidhi hindi: नवार्ण साधना मंत्र सिद्धि बेनिफिट

Navarna Mantra Mahatv: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार दुर्गाजी सभी दुखों का नाश करने वाली देवी हैं, जब नवरात्रि या किसी अन्य समय नवग्रहों से परेशान व्यक्ति नवार्ण मंत्र से उनकी पूजा करता है तो माता की नौ शक्तियां जागृत होकर नवग्रहों को नियंत्रित कर देती हैं। इससे मनुष्यों का अहित नहीं हो पाता।
ये नवार्ण मंत्र यानी नव अक्षरीय मंत्र ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे है। इसमें हर एक अक्षर का संबंध मां दुर्गा की नौ शक्ति से है और हर शक्ति का संबंध अलग-अलग ग्रह से है।

ऐंः नवार्ण मंत्र ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे में पहला अक्षर ऐं है, इसका संबंध दुर्गाजी की पहली शक्ति शैल पुत्री से है, जिनकी उपासना नवरात्रि के पहले दिन की जाती है। यह अक्षर मां शैलपुत्री का स्मरण कराता है, जो सूर्य ग्रह को नियंत्रित करती हैं।
ह्रींः नवार्ण मंत्र का दूसरा अक्षर ह्रीं है, इसका संबंध मां दुर्गा की दूसरी शक्ति मां ब्रह्मचारिणी से है। इनकी पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है, ये चंद्रमा ग्रह को नियंत्रित करती हैं।

क्लीं चा मुं डा यै वि चैः नवार्ण मंत्र का तीसरा अक्षर क्लीं है, जिसका संबंध मां चंद्रघंटा से है। चौथा अक्षर चा है जिसका संबंध मां कुष्मांडा, पांचवां अक्षर मुं जिसका संबंध मां स्कंदमाता, छठा अक्षर डा जिसका संबंध मां कात्यायनी, सातवां अक्षर यै जिसका संबंध कालरात्रि, आठवां अक्षर वि जिसका संबंध मां महागौरी और नौवा अक्षर चै है जिसका संबंध मां सिद्धिदात्री से है और ये क्रमशः मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु ग्रहों को नियंत्रित करती हैं।

नवार्ण मंत्र का जाप ऐसे करें

Navarn Mantra Jap Niyam: नवार्ण मंत्र के तीन देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं, जबकि तीन देवियां देवियां महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती हैं। दुर्गा की यह नवों शक्तियां धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होती हैं। इस मंत्र का जाप नवरात्रि में रोज कम से कम तीन बार 108 मनके की माला से करना चाहिए। वैसे रोज इसका जाप करने से नवग्रहों से संबंधित समस्याओं का अंत हो जाता है।

हालांकि दुर्गासप्तशती में विजयादशमी की महत्ता को ध्यान में रखते हुए मंत्र के पहले ॐ अक्षर जोड़कर इसे दशाक्षर मंत्र का रूप दिया गया है। इस दशाक्षरीय मंत्र का प्रभाव वही है जो नवार्ण मंत्र का है, बशर्ते मंत्र का जाप निष्ठा और श्रद्धा से किया जाए। हालांकि इसके कुछ नियम है जिसका पालन करना चाहिए।
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माला सिद्धि मंत्र

देवी की पूजा करने के बाद नवार्ण मन्त्र का जप 108 या 1008 बार करना चाहिए। जप आरंभ करने के पहले ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नम: मंत्र से माला की पूजा करें, इसके बाद नीचे लिखी प्रार्थना पढ़ें ..

ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणी ।
चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव ।।
ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृहणामि दक्षिणे करे ।
जपकाले च सिध्दयर्थ प्रसीद मम सिद्धये ।।

ॐ हे महामाये माले! तुम सर्वशक्ति स्वरूपिणी हो ।

अर्थः तुम्हारे में समस्त चतुर्वर्ग अधिष्ठित है, इसलिये मुझे सिद्धि देनेवाली होओ , हे माला मैं तुम्हें दायें हाथ से ग्रहण करता हूं। मेरे जप में विघ्नों का नाश करो, जप करते समय किए गए संकल्पित कार्यों में सिद्धि प्राप्त करने के लिए और मंत्र सिद्धि के लिए मेरे ऊपर प्रसन्न होओ ।

ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्वमन्त्रार्थसाधिनि
साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा ।

(इस प्रकार प्रार्थना करके अब नर्वाण मंत्र ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे का जप शुरू करें ।)


नोटः जप पूरा करके उसे भगवती को समर्पित करते हुए इन मंत्रों को बोलकर ही आसन से उठना चाहिए।

अपराध सहस्त्राणि क्रियन्तेअहर्निशि मया ।
दासोअयिमितिमां मत्वा क्षम्यतां परमेश्वर ।।
मंत्र हीनं क्रिया हीनं भक्तिहीनं जनार्दन ।
यत्पूजितं मायादेव परिपूर्ण तदस्तु मे ।।
गुह्रातिगुह्रागोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिभर्वतु मे देवि त्वत्प्रसादान्महेश्वरी ।।


अर्थः परमेश्वरी! मेरे द्वारा रात-दिन सहस्त्रों अपराध होते रहते है। यह मेरा दास है यों समझकर मेरे उन अपराधों को तुम कृपापूर्वक क्षमा करो। देवि सुरेश्वरी! मैंने जो मंत्रहीन , क्रियाहीन और भक्तिहीन पूजन किया है, वह सब आपकी कृपा से पूर्ण हो। देवि सुरेश्वरी! तुम गोपनीय से भी गोपनीय वास्तु की रक्षा करनेवाली हो। मेरे निवेदन किए हुए इस जप को ग्रहण करो। तुम्हारी कृपा से मुझे सिद्धि प्राप्त हो।

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