लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां पर उस असुर के कटे हुए सिर की उपासना भी होती है। तो आइए जानते हैं कि यह पर्वत कहां है, क्या है इस जगह का इतिहास और आखिर क्यों करते हैं यहां महिषासुर की पूजा?
हम जिस पर्वत का जिक्र कर रहे हैं उसके ऊपर मां भवानी का एक मंदिर भी स्थित है। इसे सप्तश्रृंगी देवी के नाम से जानते हैं। भागवत पुराण के अनुसार 108 शक्तिपीठों में से साढ़े तीन शक्तिपीठ महाराष्ट्र में स्थित हैं। ज्ञात हो कि आदि शक्ति स्वरूपा सप्तश्रृंगी देवी को अर्धशक्तिपीठ के रुप में पूजा जाता है। यह मंदिर महाराष्ट्र राज्य के नासिक से 65 किमी दूर वणी गांव में स्थित है। मंदिर 4800 फुट ऊंचे सप्तश्रृंग पर्वत पर बना है।
सप्तश्रृंगी मंदिर में नवरात्रि के दौरान विशेष उत्सव आयोजित किया जाता है। इस दौरान देश के कोने-कोने से भक्तजन आते हैं और देवी मां से अपनी अरदास लगाते हैं। यहां नवरात्रि का पर्व अत्यंत ही धूमधाम से मनाया जाता है। मंदिर में स्थापित देवी चैत्र नवरात्रि में प्रसन्न मुद्रा में दिखती हैं तो अश्विन नवरात्रि में बहुत ही गंभीर दिखाई देती हैं।
सप्तश्रृंगी अर्थात सात पर्वतों की देवी
सप्तश्रृंग पर्वत पर बसे इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 472 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। देवी का यह मंदिर सात पर्वतों से घिरा हुआ है इसलिए यहां की देवी को सप्तश्रृंगी अर्थात सात पर्वतों की देवी कहा जाता है। यहां पानी के 108 कुंड हैं। पर्वत पर स्थित गुफा में तीन द्वार हैं और प्रत्येक द्वार से देवी की प्रतिमा देखी जा सकती है।
दुर्गा सप्तशती के अनुसार सप्तश्रृंगी देवी की उत्पत्ति ब्रह्मा के कमंडल से हुई थी। इनकी पूजा महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती के रुप में की जाती है। कहा जाता है कि देवताओं के आह्वान पर मां सप्तश्रृंगी ने इसी पर्वत के ऊपर महिषासुर को युद्ध में परास्त करके उसका वध किया था।
सभी देवताओं ने दिए थे अस्त्र शस्त्र
भागवत पुराण के अनुसार महिषासुर राक्षस का वध करने के लिए सभी देवताओं ने मिलकर अपने अस्त्र शस्त्र सप्तश्रृंगी देवी को दिए थे। अट्ठारह हाथों वाली सप्तश्रृंगी देवी ने हर हाथ में अलग अलग अस्त्र धारण किया है। भगवान शंकर ने उन्हें त्रिशूल, विष्णु ने चक्र, वरुण ने शंख, अग्निदेव ने दाहकत्व, वायु ने धनुष-बाण, इंद्र ने वज्र और घंटा, यम ने दंड, दक्ष प्रजापति ने स्फटिक माला, ब्रह्मदेव ने कमंडल, सूर्य की किरणें, काल स्वरूपी देवी ने तलवार, क्षीरसागर का हार, कुंडल और कड़ा, विश्वकर्मा भगवान ने तीक्ष्ण परशु और कवच, समुद्र ने कमल हार, हिमालय ने सिंह वाहन आदि प्रदान किए थे।
भागवत पुराण के अनुसार महिषासुर राक्षस का वध करने के लिए सभी देवताओं ने मिलकर अपने अस्त्र शस्त्र सप्तश्रृंगी देवी को दिए थे। अट्ठारह हाथों वाली सप्तश्रृंगी देवी ने हर हाथ में अलग अलग अस्त्र धारण किया है। भगवान शंकर ने उन्हें त्रिशूल, विष्णु ने चक्र, वरुण ने शंख, अग्निदेव ने दाहकत्व, वायु ने धनुष-बाण, इंद्र ने वज्र और घंटा, यम ने दंड, दक्ष प्रजापति ने स्फटिक माला, ब्रह्मदेव ने कमंडल, सूर्य की किरणें, काल स्वरूपी देवी ने तलवार, क्षीरसागर का हार, कुंडल और कड़ा, विश्वकर्मा भगवान ने तीक्ष्ण परशु और कवच, समुद्र ने कमल हार, हिमालय ने सिंह वाहन आदि प्रदान किए थे।
सप्तश्रृंगी मंदिर की सीढ़ियों के बायीं तरफ महिषासुर का एक छोटा सा मंदिर बना है। यहां महिषासुर के कटे हुए सिर की पूजा होती है। माना जाता है कि इसी स्थान पर देवी ने महिषासुर का वध करने के लिए त्रिशूल से प्रहार किया था और त्रिशूल की दिव्य शक्ति के कारण पहाड़ पर एक छेद बन गया था। वह छेद आज भी मौजूद है।