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महाशिवरात्रि पर शिवलिंग की पूजा का शास्त्रोंक्त महत्व, ऐसे करते हैं शिवजी मनोकामना पूर्ति

महाशिवरात्रि पर ऐसे करते हैं शिवजी मनोकामना पूर्ति

Feb 25, 2019 / 03:53 pm

Shyam

महाशिवरात्रि पर शिवलिंग की पूजा का शास्त्रोंक्त महत्व, ऐसे करते हैं शिवजी मनोकामना पूर्ति

हिन्दू धर्म शास्त्रों में महाशिवरात्रि का अनेक रूपों में अलग-अलग महत्व बताया गया हैं । इस शिवलिंग के पूजन का सबसे बड़ा महत्व बताया गया है, और देश ही दुनिया में भिन्न भिन्न प्रकार के शिवलिंगों की स्थापना भी की गई । शिवलिंग माने परम कल्याणकारी शुभ सृजन ज्योति, संपूर्ण ब्रह्मांड और हमारा शरीर भी इसी प्रकार है । भृकुटी के बीच स्थित हमारी आत्मा या कहें कि हम स्वयं भी इसी तरह हैं बिंदु रूप । जाने किस महाशिवरात्रि पर शिवलिंग की पूजा के शिवजी कैसे मनोकामना पूर्ति करते हैं ।



1- शिवलिंग हैं ब्रह्मांड का प्रतीक- संपूर्ण ब्रह्मांड उसी तरह है जिस तरह कि शिवलिंग का रूप है जिसमें जलाधारी और ऊपर से गिरता पानी है । शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्रह्मांड में घूम रही हमारी आकाशगंगा और उन पिंडों की तरह है, जहां जीवन होने की संभावना हैं । वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे सृष्टि प्रकट होती है उसे शिवलिंग कहते हैं ।



2- शिवलिंग ही शिव का आदि और अनादी रूप- ईश्वर निराकार है, और शिवलिंग भी उसी का प्रतीक हैं । शून्य, आकाश, अनंत, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे ‘शिवलिंग’ कहा गया हैं । स्कंद पुराण में कहा गया है कि आकाश स्वयंलिंग है । शिव पुराण में शिव को संसार की उत्पत्ति का कारण और परब्रह्म पूर्ण पुरुष और निराकार ब्रह्म हैं ।


3- शिवलिंग ही निराकार ज्योति का प्रतीक- पुराणों में शिवलिंग को कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है, जैसे प्रकाश स्तंभलिंग, अग्नि स्तंभलिंग, ऊर्जा स्तंभलिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभलिंग आदि । वेदानुसार ज्योतिर्लिंग यानी ‘व्यापक ब्रह्मात्मलिंग’ जिसका अर्थ है ‘व्यापक प्रकाश’ । शिव पुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया हैं ।

4- ऐसे प्रारंभ हुई शिवलिंग की पूजा- भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर हुए विवाद को सुलझाने के लिए एक दिव्य ***** (ज्योति) को प्रकट किया था । इस ज्योतिर्लिंग का आदि और अंत ढूंढते हुए ब्रह्मा और विष्णु को शिव के परब्रह्म स्वरूप का ज्ञान हुआ । इसी समय से शिव को परब्रह्म मानते हुए उनके प्रतीक रूप में ज्योतिर्लिंग की पूजा आरंभ हुई । हिन्दू धर्म में शिवलिंग और शालिग्राम को भगवान शंकर और विष्णु का विग्रह रूप मानकर पूजा की जाती हैं ।



5- शिवलिंग के प्रकार- प्रमुख रूप से शिवलिंग 2 प्रकार के होते हैं- पहला आकाशीय या उल्का शिवलिंग और दूसरा पारद शिवलिंग । पहला उल्कापिंड की तरह काला अंडाकार लिए हुए । ऐसे शिवलिंग को ही भारत में ज्योतिर्लिंग कहते हैं । दूसरा मानव द्वारा निर्मित पारे से बना शिवलिंग होता हैं । पारद विज्ञान प्राचीन वैदिक विज्ञान है । इसके अलावा पुराणों के अनुसार शिवलिंग के प्रमुख 6 प्रकार होते हैं- देवलिंग, असुरलिंग, अर्शलिंग, पुराणलिंग, मनुष्यलिंग और स्वयंभू महादेव परब्रह्म हैं । इनका श्रद्धापूर्वक अभिषेक करने से सैकड़ों मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं ।

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