पंडित सुनील शर्मा के अनुसार इस दिन पूजन में भगवान विष्णु को पुष्प, जल, अक्षत, रोली तथा विशिष्ट सुगंधित पदार्थों अर्पित करना चाहिए। जया एकादशी का यह व्रत बहुत ही पुण्यदायी होता है। मान्यता है कि इस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत करने वाले व्यक्ति को भूत-प्रेत, पिशाच जैसी योनियों में जाने का भय नहीं रहता है। साथ ही उसको हर कष्ट से मुक्ति भी मिलती है।
जया एकादशी व्रत मुहूर्त…
जया एकादशी पारणा मुहूर्त : 06:51:55 से 09:09:00 तक 24, फरवरी को
अवधि : 2 घंटे 17 मिनट
जया एकादशी व्रत : ऐसे करें पूजा…
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और वंदना की जाती है।
1. जया एकादशी व्रत के लिए उपासक को व्रत से पूर्व दशमी के दिन एक ही समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। व्रती को संयमित और ब्रह्मचार्य का पालन करना चाहिए।
2. प्रात:काल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर धूप, दीप, फल और पंचामृत आदि अर्पित करके भगवान विष्णु के श्रीकृष्ण अवतार की पूजा करनी चाहिए।
3. रात्रि में जागरण कर श्री हरि के नाम के भजन करना चाहिए।
4. द्वादशी के दिन किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर, दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिए।
जानकारों के अनुसार हिंदू धर्म में एकादशी के व्रत का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं, और जब भी अधिकमास या मलमास आता है तो इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि माघ शुक्ल एकादशी को किसकी पूजा करनी चाहिए, तथा इस एकादशी का क्या महात्मय है। इस भगवान ने उत्तर दिया कि इस एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायी होती है।
इसका व्रत करने से व्यक्ति सभी नीच योनि अर्थात भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है। श्रीकृष्ण ने इससे जुड़ी एक कथा भी युधिष्ठिर को सुनाई, जो इस प्रकार है…
जया एकादशी की कथा…
भगवान श्रीकृष्ण के बताया कि एक बार नंदन वन में उत्सव चल रहा था। इस उत्सव में सभी देवता, सिद्ध संत और दिव्य पुरूष आए थे। इसी दौरान एक कार्यक्रम में गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं।
इसी सभा में गायन कर रहे माल्यवान नाम के गंधर्व पर नृत्यांगना पुष्पवती मोहित हो गयी। अपने प्रबल आर्कषण के चलते वो सभा की मर्यादा को भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो जाए। ऐसा ही हुआ और माल्यवान अपनी सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादा से भटक कर सुर ताल भूल गया।
इन दोनों की भूल पर इन्द्र क्रोधित हो गए और दोनों को श्राप दे दिया कि वे स्वर्ग से वंचित हो जाएं और पृथ्वी पर अति नीच पिशाच योनि को प्राप्त हों। श्राप के प्रभाव से दोनों पिशाच बन गए और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर अत्यंत कष्ट भोगते हुए रहने लगे।
एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनों अत्यंत दु:खी थे, जिस के चलते उन्होंने सिर्फ फलाहार किया और उसी रात्रि ठंड के कारण उन दोनों की मृत्यु हो गई। इस तरह अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो जाने के कारण दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गयी।
वे पहले से भी सुन्दर हो गए और पुन: स्वर्ग लोक में स्थान भी मिल गया। जब देवराज इंद्र ने दोनों को वहां देखा तो चकित हो कर उनसे मुक्ति कैसे मिली यह पूछा। तब उन्होंने बताया कि ये भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है।
इन्द्र इससे प्रसन्न हुए और कहा कि वे जगदीश्वर के भक्त हैं इसलिए अब से उनके लिए आदरणीय हैं, अत: स्वर्ग में आनन्द पूर्वक विहार करें।
जया एकादशी पूजन विधि…
कथा सुनकार श्रीकृष्ण ने कहा कि जया एकादशी के दिन विष्णु जी की पूजा करना सर्वोत्तम है। जो इस एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें दशमी तिथि से को एक समय सात्विक भोजन करना चाहिए।
इसके बाद एकादशी के दिन श्रीविष्णु जी का ध्यान करके व्रत का संकल्प करें और फिर धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, एवं पंचामृत से उनकी पूजा करें। पूरे दिन व्रत रखें और संभव हो तो रात्रि में भी व्रत रखकर जागरण करें।
अगर रात्रि में व्रत संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं। दूसरे दिन यानि द्वादशी दान पुण्य करने के बाद ही भोजन ग्रहण करें।