मान्यता है कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर ( Lord Shiva ) को पति के रूप में पाने के लिए किया था। हरतालिका तीज व्रत करने से महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यह कठिन व्रत है, हरतालिका तीज व्रत निराहार और निर्जला किया जाता है।
व्रत की पौराणिक कथा यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। पार्वतीजी ने भगवान भोलेनाथ को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। उन्होंने हिमालय पर गंगा नदी के तट पर भूखे-प्यासे रहकर तपस्या की। इससे उनके पिता हिमालय बेहद दुखी थे। एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वतीजी के विवाह का प्रस्ताव लेकर आए लेकिन जब माता पार्वती को इस बात का पता चला तो, वे विलाप करने लगी। उन्होंने बताया कि वे भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप कर रही हैं। इसके बाद पार्वती जी वन में चली गई और भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई।
ये भी पढ़ें- Hartalika Teej 2019: हरतालिका तीज कब है, 1 या 2 सितंबर? वन में भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन हस्त नक्षत्र में माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की आराधना में मग्न होकर रात्रि जागरण किया। माता पार्वती के कठोर तप को देखकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और पार्वती जी की इच्छानुसार उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया। तभी से अच्छे पति की कामना और पति की दीर्घायु के लिए कुंवारी कन्या और सौभाग्यवती स्त्रियां हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं और भगवान शिव व माता पार्वती की पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।