दुर्गा सप्तशती के अनुसार, महागौरी के अंश से कौशिकी का जन्म हुआ, जिसने शुंभ और निशुंभ का अंत किया था। महगौरी को भगवान शिव की पत्नी शांभवी माना जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी पार्वती तपस्या के कारण श्याम रंग की हो जाती हैं। इसके बाद भगवान शिव उन्हें गंगा में स्नान करवाकर गौर वर्ण का वरदान देते हैं, जिससे देवी गौर वर्ण की हो जाती हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी पार्वती तपस्या के कारण श्याम रंग की हो जाती हैं। इसके बाद भगवान शिव उन्हें गंगा में स्नान करवाकर गौर वर्ण का वरदान देते हैं, जिससे देवी गौर वर्ण की हो जाती हैं।
शास्त्रों के अनुसार, राहू ग्रह व नैऋत्य दिशा की स्वामिनी देवी महागौरी का वर्ण यानी शरीर श्वेत रंग का हो जाता है। माना जाता है कि महागौरी के पूजन से रोगों का नाश होता है और दांपत्य जीवन सुखी रहता है।
गुप्त नवरात्रि के अष्टमी के दिन दक्षिण-पश्चिम दिशा में मुखी होकर सफेद कपड़े पर महागौरी का चित्र स्थापित करके पूजन करना चाहिए। इस दिन कन्या पूजन करना श्रेष्ठ माना जाता है, कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन करते हैं।
माना जाता है कि अष्टमी के दिन किया गया कन्या पूजन मां महागौरी को प्रसन्न करता है। गुप्त नवरात्रि में विशेषकर शास्त्रीय पद्धति से पूजा की जाती है। गुप्त नवरात्रि में विशेष रुप से रात्रि में पूजन किया जाता है। गुप्त नवरात्रि के नौ दिनों में तांत्रिक शक्तियों को बढ़ावा दिया जाता है।
अष्टमी के दिन प्रतिमा को शुद्ध जल से स्नान कराकर वस्त्राभूषणों द्वारा श्रृंगार किया जाता है और फिर विधिपूर्वक आराधना की जाती है। हवन की अग्नि में धूप, कपूर, घी, गुग्गल और हवन सामग्री की आहुतियां दी जाती है।
सिंदूर में एक जायफल को लपेटकर आहुति देने का भी विधान है। धूप, दीप से देवी की पूजा करने के बाद मातेश्वरी की जय बोलते हुए 101 परिक्रमा की जाती है।