देव दीपावली दिवाली के 15 दिन बाद मनाई जाती है। माना जाता है कि इस दिन देवता धरती पर आकर पवित्र गंगा नदी के किनारे दीप जलाते हैं। इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन देवता भी देवलोक छोड़ कर दीपावली मनाने धरती पर आते हैं।
Dev Deepawali 2020 : शुभ मुहुर्त
देव दीपावली 2020 तिथि (Dev Deepawali 2020 Tithi) : 29 नवंबर 2020
देव दीपावली 2020 शुभ मुहूर्त (Dev Deepawali 2020 Shubh Muhurat)
प्रदोषकाल देव दीपावली मुहूर्त – शाम 5 बजकर 08 मिनट से शाम 07 बजकर 47 मिनट तक
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – दोपहर 12 बजकर 47 मिनट से (29 नवम्बर 2020)
पूर्णिमा तिथि समाप्त – अगले दिन दोपहर 02 बजकर 59 मिनट तक (30 नवम्बर 2020)
मान्यता के अनुसार त्रिपुरासुर ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की थी और उनसे वरदान प्राप्त करके तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहता था। इस समस्या के समाधान के सभी देवता भगवान शिव के पास गए। जिसके बाद भगवान शिव ने देवताओं की विनती को स्वीकार करते हुए त्रिपुरासुर का वध कर दिया। देव दीपावली कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को पड़ती है। कार्तिक मास वैसे भी त्योहारों और व्रत के लिए जाना जाता है।इसी कारण इस महीने में पूजा पाठ, जप, तप, साधना आदि करना बहुत शुभ माना जाता है।
देव दीपावली पूजा विधि (Dev Deepawali Puja Vidhi)
1. देव दीपावली के दिन साधक को गंगा स्नान अवश्य करना चाहिए और स्नान के बाद साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।
2. इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। लेकिन इनकी पूजा से पहले भगवान गणेश की विधिवत पूजा अवश्य करें।
3.भगवान शिव को इस दिन पूजा में पुष्प, घी, नैवेद्य, बेलपत्र अर्पित करें और भगवान विष्णु को पूजा में पीले फूल, नैवेद्य, पीले वस्त्र, पीली मिठाई अर्पित करें।
4. इसके बाद भगवान शिव और भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें और देव दीपावली की कथा सुनें।कथा सुनने के बाद भगवान गणेश, भगवान शिव और भगवान विष्णु की धूप व दीप से आरती उतारें।
5.अंत में भगवान शिव और भगवान विष्णु को मिठाई का भोग लगाएं और शा्म के समय गंगा घाट पर दीपक जलाएं। यदि आप ऐसा नहीं कर सकते तो अपने घर के मुख्य द्वार पर तो दीपक अवश्य जलाएं।
धार्मिक मान्यता है कि इस दिन सभी देवता काशी में खुशियां मनाने आते हैं। इसलिए पूरी काशी को रौशनी से सजाया जाता है। बनारस के घाटों को दीपों से जगमगाया जाता है।
: पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के कुछ दिन पहले देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु 4 महीने की निद्रा से जागते हैं। जिसकी खुशी में सभी देवता स्वर्ग से उतरकर बनारस के घाटों पर दीपों का उत्सव मनाते हैं।
: ऐसी एक अन्य मान्यता है कि दीपावली पर माता लक्ष्मी अपने प्रभु भगवान विष्णु से पहले जाग जाती हैं, इसलिए दीपावली के 15वें दिन कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवताओं की दीपावली मनाई जाती है।
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा से कुछ दिन पहले देवउठनी एकादशी पर नारायण अपने 4 महीने की निद्रा से जागते हैं। जिसकी खुशी में सभी देवता स्वर्ग से उतरकर बनारस के घाटों पर दीपों का उत्सव मनाते हैं। सके अलावा एक मान्यता ये भी प्रचलित है कि इस दिन भगवान शंकर ने त्रिपुर नाम के असुर का वध करके उसके दुष्टों से काशी को मुक्त कराया था। जिसके बाद देवताओं ने इसी कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपने सेनापति कार्तिकेय के साथ भगवान शंकर की महाआरती की और इस पावन नगरी को दीप मालाओं कर सजाया था।
इसके बाद देवताओं ने इसी कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपने सेनापति कार्तिकेय के साथ भगवान शंकर की महाआरती की और इस पावन नगरी को दीप मालाओं कर सजाया था। परंपराओं और संस्कृतियों से रची-बसी काशी की देश दुनिया में पहचान बाबा विश्वनाथ, गंगा और उसके पावन घाटों से है। श्रावण में शिवपूजन और गंगा तीरे होने वाली शाम की आरती के बाद यदि कोई पर्व लोगों को इस शहर की ओर आकर्षित करता है तो वह देव दीपावली ही है, जिसे देवताओं का महापर्व भी माना जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार त्रिपुर नामक राक्षस ने एक एक लाख वर्ष तक तीर्थराज प्रयाग में कठोर तप किया था। उसकी तपस्या से तीनों लोकों हिलने लगे थे। त्रिपुर की तपस्या देखकर सभी देवता गण भयभीत हो गए और उन्होंने त्रिपुर की तपस्या भंग करने का निश्चय किया। इसके लिए उन्होंने अप्सराओं को त्रिपुर के पास उसकी तपस्या भंग करने के लिए भेजा लेकिन वह अप्सराएं त्रिपुर की तपस्या भंग नही कर सकी।