सती ने दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह करने के बाद हिमालय के घर पार्वती रुप में जन्म लिया। उन्होंने नारद मुनि के उपदेश सुन भगवान शिव को ही अपना भावी पति मान लिया और उन्हें प्राप्त करने के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए अखंड तप आरंभ कर दिया। उन्होंने एक हजार वर्ष तक केवल मात्र फल-फूल खाते हुए तप किया। इसके बाद कई हजार वर्षों तक वह पूर्ण निराहार और निर्जल रह कर तप करती रही। अंत में उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें दर्शन दिए। इसी कारण उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। इनकी स्तुति से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं।
भगवती के इस स्वरूप की पूजा करने के लिए स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ धुले हुए वस्त्र पहनें तथा देवी के सामने एक आसन पर बैठ कर फूल, अक्षत, दीपक, धूप आदि से उनकी पूजा करें। इसके बाद प्रसाद चढ़ाएं और निम्न मंत्र बोलते हुए उनका आव्हान करें।
या देवी सर्वभेतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
दधाना कर मद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डल
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा