देवयज्ञ से होती है शुरूआत
अश्वमेध यज्ञ एक प्राचीन वैदिक यज्ञ है। यह यज्ञ मुख्यरूप से राजाओं के द्वारा किया जाता था। इसमें सबसे पहले देवयज्ञ की जाती है। इसके बाद अश्व यानि घोड़े की पूजा करते हैं। मान्यता है कि इस यज्ञ में घोड़े के सिर पर जयपत्र बांध कर छोड़ दिया जाता है। वह घोड़ा पूरी पृथ्वी पर जहां तक जाता वहां तक राजा का साम्रराज्य हो जाता है।चक्रवर्ती बनने के लिए क्या जाता है अश्वमेध
यदि कोई अन्य राजा इस घोड़े को बंदी बना लेता है तो उसको यज्ञकर्ता राजा की सेना से युद्ध लड़ना होता है। माना जाता है कि अश्वमेध यज्ञ वही राजा करता है जिसको अपनी शक्ति और पराक्रम पर भरोसा होता है। क्योंकि यज्ञकर्ता राजा को अश्व को बंदी बनाने वाले राजा से युद्ध जीत कर आगे बढ़ना होता है। अगर यज्ञकर्ता राजा किसी अन्य राजा से युद्ध में पराजित होता है तब भी अश्वमेध यज्ञ सफल नहीं होता। यह यज्ञ तभी सफल माना जाता है जब अश्व पूरे भूमंडल में निर्भीक होकर घूमे। उससे पूरी पृथ्वी पर कोई रोके नहीं। इसके आधार पर ही राजा को चक्रवर्ती सम्राट कहलाता है।अश्वमेध यज्ञ का महत्व
सामराज्य का विस्तार- मान्यता है कि अश्वमेध यज्ञ के जरिए राजा अपने साम्राज्य का विस्तार करते हैं। राजनीतिक प्रभुत्व- इस यज्ञ से राजा की राजनीतिक स्थिति और उसके बाहुबल का पता चलत है। धार्मिक और सामाजिक प्रतिष्ठा- अश्वमेध यज्ञ करने से राजा को धार्मिक और सामाजिक मान्यता मिलती है।
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