धर्म शास्त्रों और पुराणों में 84 लाख योनियों का उल्लेख मिलता है और इन योनियों को धर्म के जानकार आचार्यों ने दो भागों में बाटां गया है। पहला- योनिज और दूसरा आयोनिज।
1- ऐसे जीव जो 2 जीवों के संयोग से उत्पन्न होते हैं वे योनिज कहे जाते हैं।
2- ऐसे जीव जो अपने आप ही अमीबा की तरह विकसित होते हैं उन्हें आयोनिज कहा गया।
3- इसके अतिरिक्त स्थूल रूप से प्राणियों को भी 3 भागों में बांटा गया है-
1- जलचर- जल में रहने वाले सभी प्राणी।
2- थलचर- पृथ्वी पर विचरण करने वाले सभी प्राणी।
3- नभचर- आकाश में विहार करने वाले सभी प्राणी। उक्त 3 प्रमुख प्रकारों के अंतर्गत मुख्य प्रकार होते हैं अर्थात 84 लाख योनियों में प्रारंभ में निम्न 4 वर्गों में बांटा जा सकता है।
1- जरायुज- माता के गर्भ से जन्म लेने वाले मनुष्य, पशु जरायुज कहलाते हैं।
2- अंडज- अंडों से उत्पन्न होने वाले प्राणी अंडज कहलाते हैं।
3- स्वदेज- मल-मूत्र, पसीने आदि से उत्पन्न क्षुद्र जंतु स्वेदज कहलाते हैं।
4- उदि्भज: पृथ्वी से उत्पन्न प्राणी उदि्भज कहलाते हैं।
पदम् पुराण के एक श्लोकानुसार…जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यक:।
पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल लक्षानी पशव:, चतुर लक्षाणी मानव:।।
जलचर 9 लाख, स्थावर अर्थात पेड़-पौधे 20 लाख, सरीसृप, कृमि अर्थात कीड़े-मकौड़े 11 लाख, पक्षी/नभचर 10 लाख, स्थलीय/थलचर 30लाख और शेष 4 लाख मानवीय नस्ल के।
घर में ही कर लें यह काम हनुमान जी बना देंगे मालामाल
कुल 84 लाख।– पानी के जीव-जंतु- 9 लाख,
– पेड़-पौधे- 20 लाख
– कीड़े-मकौड़े- 11 लाख
– पक्षी- 10 लाख
– पशु- 30 लाख
– देवता-मनुष्य आदि- 4 लाखकुल योनियां- 84 लाख।
‘प्राचीन भारत में विज्ञान और शिल्प’ ग्रंथ में शरीर रचना के आधार पर प्राणियों का वर्गीकरण किया गया है जिसके अनुसार,
1- एक शफ (एक खुर वाले पशु)- खर (गधा), अश्व (घोड़ा), अश्वतर (खच्चर), गौर (एक प्रकार की भैंस), हिरण इत्यादि।
2- द्विशफ (दो खुर वाले पशु)- गाय, बकरी, भैंस, कृष्ण मृग आदि।
3- पंच अंगुल (पांच अंगुली) नखों (पंजों) वाले पशु- सिंह, व्याघ्र, गज, भालू, श्वान (कुत्ता), श्रृंगाल आदि।
इस प्रकार शास्त्रों में कुल 84 लाख योनियों का वर्णन मिलता है।
*****************