दमोह. सिद्ध क्षेत्र जैन तीर्थ कुंडलपुर में बड़ेबाबा जिनालय का मंगल कलशारोहण व सहस्त्रकूट जिनालय की भव्य वेदी प्रतिष्ठा का भव्य कार्यक्रम के अंतर्गत 7 जून को विशाल घट यात्रा व ध्वजारोहण कार्यक्रम आयोजित हुआ। आचार्य विद्यासागर के शिष्य आचार्य समय सागर के चतुर्विध संघ के सानिध्य में सर्वप्रथम सामूहिक रूप से भाग्योदय तीर्थ कमेटी सागर द्वारा ध्वजारोहण किया गया । प्रतिष्ठाचार्य सम्राट विनय भैया ने मंत्रोचार के बीच ध्वजारोहण संपन्न कराया ।
आचार्यश्री विद्यासागर, समय सागर की भक्ति भाव के साथ संगीतमय पूजन हुई। आचार्य समयसागर के पद प्रक्षालन भाग्योदय कमेटी के पदाधिकारियों ने किया। आचार्यश्री के चित्र का अनावरण भाग्योदय ट्रस्ट ने किया । शास्त्र समर्पित कुंडलपुर क्षेत्र कमेटी ने किया । इस अवसर पर हजारों महिलाएं सिर पर कलश रखकर घट यात्रा जुलूस में सम्मिलित हुई । गाजे-बाजे के साथ घट यात्रा शोभायात्रा ने बड़ेबाबा मंदिर की परिक्रमा की। इसके बाद सहस्त्रकूट जिनालय में प्रतिष्ठाचार्य द्वारा मंगल कलश से शुद्धि कराई गई।
बड़ेबाबा का अभिषेक, शांति धारा ,पूजन विधान हुआ। इस अवसर पर आचार्यश्री समय सागर ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा वर्तमान में यह पंचम कलिकाल है। यहां पर साक्षात प्रभु का दर्शन संभव नहीं है। जिनबिम्बों के माध्यम से धर्म की आराधना की जाती है। देव,शास्त्र, गुरू का आलंबन लेकर परिणामों में पवित्रता आती है। उज्वलता आती है और उसके माध्यम से ही पुण्य का संचय भी होता है। अज्ञान दशा में अर्जित जो पाप कर्म है। उसका निर्मूलन भी होता है। गुरुदेव ने कई बार यह बात रखी है । साधन परिणाम उपलब्ध होने के साधना की ओर दृष्टि नहीं जाती। सारे के सारे उपस्थित रहते हैं, लेकिन उनका उपयोग नहीं हो पाता ।
टेप रिकॉर्डर अब तो जमाना चला गया, लेकिन वह भी जमाना था। आचार्य महाराज देशना देने के लिए बैठे हैं और श्रावकजन टेप रिकॉर्डर सामने रखते है। उसमें कैसेट तो सभी जानते है, टेप रिकॉर्ड के भीतर उस केसेट को फिट किया जाता, बाद में स्विच को ऑन करते हैं तो टेपरिकॉर्डर चालू हो जाता, आप लोग सुन लेते हैं । मैं दृष्टांत को रख रहा हूं। ज्ञाना वर्णी कर्म का क्षयोपशम हुआ है। वह कैसेट की भांति है और टेप रिकॉर्ड में स्विच को ऑन किया जाता है, देशना आप सुन सकते हैं। उसी प्रकार वस्तु स्वरूप को प्राप्त करने की दृष्टि से उसे जानने की दृष्टि से उपयोग केंद्रित हो जाता है ।
उस पदार्थ का बोध होता है, बोध होने के उपरांत उपलब्ध ज्ञान के माध्यम से पदार्थ के बहुत सारे पदार्थ हैं। उन अनंतानंत पदार्थों के बीच में कौन सा पदार्थ ग्रहण करने के योग्य है और कौन सा पदार्थ छोडऩे योग्य है, यह ज्ञान गुण के माध्यम से होता है। जो जानने योग्य पदार्थ हैं उसको ज्ञेय की संज्ञा दी गई है। ग्रहण करने योग पदार्थ को उपादेय की संज्ञा दी गई है। छोडऩे योग पदार्थ को हेय की संज्ञा दी गई है। छोडऩे योग्य पदार्थ हेय माने जाते तो छोडऩे योग्य पदार्थ कौन है जिन्हें हम हेय माने ज्ञान के माध्यम से यह बोध हो जाता है। यह छोडऩे योग्य है ग्रहण करने योग्य नहीं यह श्रद्धांन का भी विषय बन जाता है।
श्रद्धांन का विषय बनना अलग वस्तु छोडऩे का भाव होना अगल वस्तु। पंचेेद्रीय के विषय है, वह छोडऩे योग्य है। यह सिद्धांत का विषय बनने के उपरांत सम्यक्त उपलब्ध है। श्रद्धांन अलग वस्तु त्याग अलग वस्तु श्रद्धांन में और चारित्र में बड़ा अंतर होता है । आचार्यश्री ने भरत बाहुबली का प्रसंग सामने रखा। सांयकाल भक्तांमर दीप अर्चना व बड़ेबाबा की महाआरती की गई, शास्त्र प्रवचन हुए।
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