पुराने पारंपरिक खेलों से उतार रहे लॉकडाउन की थकान
•Jun 04, 2020 / 12:54 pm•
rakesh Palandi
कोरोना संक्रमण लगातार 22 मार्च से 31 मई तक अपने घरों में कैद रहने वाले बच्चे अनलॉक होते ही सड़क पर नजर आने लगे हैं। बुधवार को शहर के विभिन्न हिस्सों का जायजा लेने पर दोपहर 1 बजे से 2 बजे के बीच ही बच्चे घरों के बाहर खेलते हुए दिखे।
यह बच्चे आधुनिक खेलों के बजाए पुराने खेलों से ही अपनी थकान उतार रहे थे। शहर में बच्चों की अलग-अलग टोलियां नजर आई। कुछ बच्चे पत्थर के गप्पों से टीपू का खेल खेल रहे थे। कुछ बच्चे कंचे पिकाने के खेल में मस्त थे। वहीं दो साल से पांच साल के बच्चों की एक टोली घर के बाहर लगे रेत के ढेर में घर-घूला यानि बच्चों के सपनों के घर का निर्माण करते हुए नजर आए। यह बच्चे अपना घर बनाते और मिटाते थे। वहीं छोटी बच्चियां अपने घर के बाहर चपेटा खेलती हुई नजर आईं।
लॉक डाउन की दहशत भी दिखी रेत के ढेर खेल रहे मासूम बच्चों में लॉकडाउन का डर अभी भी दिख रहा था। जैसे ही इन बच्चों की टोली देख फोटो देखने के लिए बाइक रोकी तो बच्चे अपने घरौंदे मिटाकर भागने लगे। जब बच्चों को रोका तो वह फिर खेलने लगे। जिससे इन बच्चों के भाव नजर आ रहे थे कि यदि वह लॉकडाउन में घर से बाहर निकल रहे थे तो उन्हें पुलिसकर्मियों के अलावा मोहल्ले के बड़े बुजुर्गों की डांट फटकार भी सुनने मिली थी। ------------- सैंकड़ों बच्चे अभी भी घरों में कैद दमोह शहर के मिनी स्टेडियम पर ग्रीष्मकालीन खेल शिविर आयोजित किए जाते थे, जिसमें निजी व सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले 6 साल से लेकर 15 साल तक बच्चे विभिन्न खेल खेलने सुबह व शाम जाते थे, लेकिन लगातार लॉकडाउन के कारण यह बच्चे घरों में कैद हैं। अनलॉक में दौडऩे निकलने लगे अब अनलॉक में बच्चे सुबह से तहसील ग्राउंड व होमगार्ड ग्राउंड के साथ सर्किट हाऊस पहाड़ पर दौडऩे जाने लगे हैं, लेकिन खेल गतिविधियां शुरू न होने से अभी भी बच्चों को खेलने का मौका नहीं मिलने से घरों में टीवी, लैपटॉप व मोबाइल पर ही वक्त बिता रहे हैं।
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