जिला मुख्यालय स्थित कलक्ट्रेट के पास चूरू-जयपुर रोड पर करोड़ों की लागत से बना रेलवे ओवरब्रिज क्षतिपूर्ति दायित्व (डिफेक्ट लायबिलिटी) खत्म होते ही धरकने लगा है। तीन दिन से आरओबी पर यातायात बंद है। वहीं आरयूआईडीपी, सानिवि व जिला प्रशासन के अधिकारी आरओबी की स्थिति को समझने में लगे हैं। लेकिन अभी तक आरओबी के क्षतिग्रस्त होने का कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया है। अधिकारियों को अब एक्सपर्ट टीम की रिपोर्ट का इंतजार है। टीम की रिपोर्ट के बाद ही आरओबी की मरम्मत आदि का काम शुरू हो पाएगा। शुक्रवार को आरयूआईडीपी के अतिरिक्त मुख्य इंजीनियर प्रदीप गर्ग ने भी आरओबी का हर पहलू से अवलोकन किया।
गर्ग ने बताया कि आरओबी के किसी हिस्से में क्षतिग्रस्त होने की सूचना मिली थी। स्थिति का अवलोकन किया है। एक्सपर्ट की टीम ने भी इसका निरीक्षण किया है। एक्सपर्ट की रिपोर्ट मिलने पर आगामी कार्रवाई शुरू की जाएगी। उन्होंने ओवरब्रिज का एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक अवलोकन किया। उन्होंने कहा भविष्य में इस तरह की कोई समस्या नहीं आए। इसलिए इसका बारीकी से अध्ययन कर काम करवाया जाएगा।
गर्ग ने बताया कि आरओबी के किसी हिस्से में क्षतिग्रस्त होने की सूचना मिली थी। स्थिति का अवलोकन किया है। एक्सपर्ट की टीम ने भी इसका निरीक्षण किया है। एक्सपर्ट की रिपोर्ट मिलने पर आगामी कार्रवाई शुरू की जाएगी। उन्होंने ओवरब्रिज का एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक अवलोकन किया। उन्होंने कहा भविष्य में इस तरह की कोई समस्या नहीं आए। इसलिए इसका बारीकी से अध्ययन कर काम करवाया जाएगा।
21 अप्रेल 2018 को खत्म हो गई डिफेक्ट लायबिलिटी
गर्ग के साथ आए एक्सईएन दिनेश कुमार ने बताया कि 21 अप्रेल 2013 को आरओबी का काम खत्म हो गया था। इसके बाद सानिवि की नेशनल हाईवे विंग को आरओबी सौंप दिया गया था। 21 अप्रेल 2018 को पुल की डिफेक्ट लाइबिलिटी समाप्त हो गई। पुल के निर्माण पर साढ़े 29 करोड़ से अधिक रुपए खर्च हुए थे। आरयूआईडीपी के सहा. इंजीनियर अनिल कुमार शर्मा, एसई कल्याणमल मंडावरिया मौजूद थे। गौरतलब है कि चूरू-जयपुर रोड पर बना यह ओवरब्रिज दरकने लगा है। इसमें यातायात के जोखिम के कारण यातायात को बंद कर दिया गया है। इतनी जल्दी इस ब्रिज के क्षतिग्रस्त होने पर सवाल उठने लगे हैं। एक ब्रिज बनता है तो उसकी आयु कम से कम पचास वर्ष मानी जाती है। लेकिन इस आरओबी को बने सिर्फ छह वर्ष ही हुए हैं और क्षतिग्रस्त हो गया। करोड़ो रुपए खर्च होने के बावजूद लगता है कि ब्रिज में गुणवत्ता युक्त सामग्री नहीं लगाई गई है।
गर्ग के साथ आए एक्सईएन दिनेश कुमार ने बताया कि 21 अप्रेल 2013 को आरओबी का काम खत्म हो गया था। इसके बाद सानिवि की नेशनल हाईवे विंग को आरओबी सौंप दिया गया था। 21 अप्रेल 2018 को पुल की डिफेक्ट लाइबिलिटी समाप्त हो गई। पुल के निर्माण पर साढ़े 29 करोड़ से अधिक रुपए खर्च हुए थे। आरयूआईडीपी के सहा. इंजीनियर अनिल कुमार शर्मा, एसई कल्याणमल मंडावरिया मौजूद थे। गौरतलब है कि चूरू-जयपुर रोड पर बना यह ओवरब्रिज दरकने लगा है। इसमें यातायात के जोखिम के कारण यातायात को बंद कर दिया गया है। इतनी जल्दी इस ब्रिज के क्षतिग्रस्त होने पर सवाल उठने लगे हैं। एक ब्रिज बनता है तो उसकी आयु कम से कम पचास वर्ष मानी जाती है। लेकिन इस आरओबी को बने सिर्फ छह वर्ष ही हुए हैं और क्षतिग्रस्त हो गया। करोड़ो रुपए खर्च होने के बावजूद लगता है कि ब्रिज में गुणवत्ता युक्त सामग्री नहीं लगाई गई है।