वर्तमान में नई तकनीक से बन रही इमारतों, मकानों की उम्र लंबी नहीं है। सीमेंट, स्टील व आरसीसी एक समय बाद मरम्मत मांगती है। काम में ली गई सामग्री बीमारियां भी पैदा कर रही हैं। वहीं, पुरानी तकनीक से बनी इमारतें स्वास्थ्य के लिए लाभदायक, पर्यावरण संरक्षण में भी मददगार होती थी। शहर में दुर्ग पर पुरानी तकनीक से बने महल आज भी मजबूती के साथ खड़े हैं। दुर्ग पर फत्ता महल, पद्मिनी महल, राणा रतनसिंह महल, कुंभा महल इसके उदाहरण हैं।
इस तरह होता था निर्माण कार्य
● छत बनाने में चूने के साथ देसी गुड़, गूगल, मैथी काम में ली जाती थी। मैथी गोंद का काम करती थी। वहीं, गूगल-गुड़ का पानी मजबूती देता था।
● बाहरी दीवार,आसार डेढ़ से दो फीट की होती थी, इससे सूर्य की किरणें अन्दर तक देरी से पहुंच पाती थी।
● चूना प्लास्टर, फर्श व छत तैयार करने में काम में लिया जाता था। वहीं, कम आय वाले लोग चूने की जगह मुरड़, मिट्टी,गोबर काम में लेते थे।