चित्तौडग़ढ़ के ओद्यौगिक क्षेत्र में किसी समय मार्बल के करीब डेढ़ सौ गेंगसा हुआ करते थे। समय बदला तो चित्तौड़ में ग्रेनाइट चमक गया। मार्बल के गेंगसा अब आधे ही रह गए। यहां के मार्बल उद्योग का इतिहास पांच दशक पुराना है। तब यहां इक्का-दुक्का ही मार्बल के गेंगसा संचालित हुआ करते थे। वर्ष 1990 के दशक में मार्बल गेंगसा की यहां बहार सी आ गई थी और देखते ही देखते एक के बाद एक करीब डेढ़ सौ गेंगसा स्थापित हो गए। मार्बल की चमक परवान चढ़ गई। तब राजस्थान में ग्रेनाइट नहीं निकलता था।
ग्रेनाइट ने मार्बल को पीछे धकेल दिया
मार्बल के बोलबाले के बीच राजस्थान के कई जिलों में ग्रेनाइट निकलना शुरू हो गया। जालोर, सिरोही, भीलवाड़ा, अजमेर सहित आसपास के इलाकों में ग्रेनाइट निकलने का क्रम शुरू हुआ तो कच्चा माल आसानी से मिलने लगा और लोगों में गे्रनाइट का क्रेज बढऩे लगा। इसका असर चित्तौडग़ढ़ में भी पड़ा। यहां मार्बल व्यवसाय की चमक फीकी पडऩे लगी और देखते ही देखते मार्बल गेंगसा बंद होना शुरू हो गए। अब करीब 70 गेंगसा ही रह गए। मार्बल व्यवसाइयों ने ग्रेनाइट कटर लगा लिए। क्यों कि कच्चा माल आसपास के इलाकों से ही आसनी से उपलब्ध होने लग गया। मांग को देखते हुए यहां के मार्बल व्यवसायी गेंगसा को बंद कर ग्रेनाइट व्यवसाय की तरफ डायवर्ट हो गए। वर्तमान में चित्तौडग़ढ़ में करीब 250 ग्रेनाइट कटर संचालित हो रहे हैं।
ग्रेनाइट का हर साल पांच सौ करोड़ का टर्न ओवर
चित्तौडग़ढ़ में ग्रेनाइट व्यवसाय अच्छा चल रहा है। यहां ग्रेनाइट का सालाना टर्न ओवर करीब पांच सौ करोड़ रुपए का है। जबकि लोकल मार्बल का व्यवसाय सिर्फ करीब पचास करोड़ रुपए सालाना ही रह गया है।
विदेशी मार्बल: एक हजार करोड़ का है सालाना टर्न ओवर
ग्रेनाइट के आगे चित्तौडग़ढ़ में लोकल मार्बल की चमक भले ही फीकी पड़ गई हो। लेकिन, विदेशी मार्बल का यहां कितना क्रेज है। इसका अनुमान इसी से ही लगाया जा सकता है कि यहां विदेशी मार्बल का सालाना टर्न ओवर करीब एक हजार करोड़ रुपए हैं। यहां इटली, टर्की और वियतनाम आदि देशों से मार्बल आयात किया जा रहा है। हालाकि विदेशों से आने से यह मार्बल महंगा पड़ता है। लेकिन, सक्षम लोग इसे काफी पसंद करते हैं, इसलिए घर और प्रतिष्ठाानों के निर्माण में इसका चलन भी कम नहीं है।
फिर भी समस्याओं से जूझ रहा मार्बल-ग्रेनाइट उद्योग
चित्तौडग़ढ़ में सालाना टर्न ओवर अच्छा होने के बावजूद यहां का मार्बल और ग्रेनाइट उद्योग कई समस्याओं से जूझ रहा है।
मार्बल-ग्रेनाइट उद्यमियों के लिए ब्याज अनुदान लागू किया था पर अब यह बंद हो गया। ब्याज अनुदान योजना चालू रखने की आवश्यकता है। ताकि, यह उद्योग और बेहतर तरीके से उन्नति कर सके।
मार्बल और ग्रेनाइट उद्योग में बिजली की खपत भी ज्यादा होती है। लेकिन, अन्य राज्यों के मुकाबले यहां बिजली की दर ज्यादा है, जिसे संतुलित करने की आवश्यकता है।
मार्बल और ग्रेनाइट पर सरकार ने 18 प्रतिशत जीएसटी लगा रखी है। इसका भार आम खरीदार पर पड़ता है। जीएसटी दर में कमी लाने की आवश्यकता है।
बरसों से यहां नया ओद्यौगिक क्षेत्र विकसित नहीं हो पाया है। मांदलदा में नया ओद्यौगिक क्षेत्र विकसित करने की यहां के जनप्रतिनिधियों ने बातें तो की थी पर जमीनी स्तर पर इस संबंध में कुछ नहीं कर पाए। यहां सबसे बड़ी समस्या ओद्यौगिक क्षेत्र विकसित नहीं हो पाना भी है।
निकटवर्ती सोनियाना क्षेत्र में ओद्यौगिक विस्तार के लिए काफी जमीन है पर वहां भी रीको की ओर से विस्तार के लिए खास प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। ऐसे में सोनियाना में भी ओद्यौगिक विस्तार रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है। जबकि पिछले करीब दो दशक से नया क्षेत्र विकसित करने की मांग चली आ रही है।