छिंदवाड़ा.बादलभोई आदिवासी राज्य संग्रहालय का नया भवन इस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों उद्घाटन के लिए सज-संवर रहा है। इस भवन में स्वतंत्रता संग्राम के आदिवासी नायकों के योगदान को विशेष रूप से चित्रांकित किया गया है। संग्रहालय में आदिवासी कलाकृतियों और संस्कृति को दीवार पर उकेरने का कुछ काम शेष है, इसे पूरा करने इस समय ट्राइबल रिचर्स इंस्टीट्यूट (टीआरआइ) भोपाल की टीम लगी हुई है।
म्यूजियम की आंतरिक दीवारों पर कलाकार इस समय आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की पेंटिंग करने में जुटे हैं। इनमें टंट्या भील, भीमा नायक, शंकर-शाह रघुनाथ शाह, रघुनाथ सिंह मंडलोई, राजा गंगाधर गोंड, बादल भोई और गंजन कोरकू, खज्या नायक, सीताराम कंवर, ढिल्लन शाह गोंड मालगुजार, राजा अर्जुन सिंह गोंड, राजा गंगाधर गोंड आदि है। इसके अलावा बांस शिल्प, लौह शिल्प, मृदा शिल्प और पेंटिंग के माध्यम से स्वतंत्रता सेनानियों के कार्य को प्रदर्शित किया जाएगा।
इस समय संग्रहालय में मौजूद ट्राइ के अधिकारी बता रहे हैं कि इस संग्रहालय का उद्घाटन 15 नवम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कर सकते हैं। इसके लिए यह तैयारी की जा रही है। ये कार्यक्रम उनके आगमन के साथ या फिर वर्चुअल हो सकता है। फिलहाल एक सप्ताह में उन्हें ये काम पूरा करना होगा।
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पांच गैलरी में हर समुदाय के होंगे जननायक
संग्रहालय में पांच गैलरी बनाई गई है। जिसमें मुख्य जनजाति गोंड, भील,बैगा, कोरकू समुदाय के 16 स्वतंत्रता सेनानियों के स्वतंत्रता संग्राम में जन विद्रोह को दर्शाया जाएगा। फिल्म आडियो गाइड टूर, नाटक आदि माध्यम होंगे।ं स्थानीय जनजातीय समुदाय के वरिष्ठ जानकार, कलाकार और इतिहासकारों से तथ्य आधारित जानकारी प्रदर्शित होगी।
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संग्रहालय में प्रवेश करते ही दिखाई देंगे महानायक बादलभोई
संग्रहालय में जैसे ही पर्यटक प्रवेश करेंगे, उन्हें दूर से ही महानायक बादलभोई की स्टेच्यू प्रतिमा दिखाई देगी। अभी बादलभोई के जीवन पर आधारित पेंटिंग लगानी शुरू कर दी गई है। जिसमें ये दर्शाया गया है कि कैसे जनजातीय नायक ने अपने हक और देश की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लिया था।
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वर्ष 1954 में हुई थी संग्रहालय की स्थापना
इस संग्रहालय की स्थापना 20 अप्रैल 1954 को हुई थी । 8 सितम्बर 1997 को इस संग्रहालय का नाम परिवर्तित कर बादल भोई राज्य आदिवासी संग्रहालय कर दिया गया। 9 एकड़ 75 डिसमिल क्षेत्र में फैले परिसर में मौजूद संग्रहालय 14 कक्ष और 4 गैलरियों में संचालित है । इस धरोहर को भव्य स्वरूप देने तीन साल पहले 33 करोड़ रुपए का नया भवन मंजूर किया गया। वर्तमान में यह भवन पूरा कर दिया गया है। शेष डेकोरेशन, फिनिशिंग और आदिवासी कलाकृतियों को सजाने-संवारने ट्राइफेड भोपाल की टीम कर रही है।
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संग्रहालय में मौजूद आदिवासियों के जीवंत दृश्य
इस संग्रहालय में आदिवासी जनजाति बैगा, गोंड, भारिया समेत अन्य जन जातियों की जीवन शैली एवं सांस्कृतिक धरोहर, प्रतीक चिन्हों, और विविध कला शिल्पों का प्रदर्शन किया गया है। उनके चिलम, बैलगाड़ी, गुल्ली का तेल निकालने का यंत्र, वाद्य यंत्र ढोलक, इकतारा, मृदंग, टिमकी, चटकुले, पानी पीने का तुम्बा, आटा पीसने चकिया, घट्टी, उडिय़ा खेती, पातालकोट,कपड़े, जूतेे, रस्सी, घुरलु की छाल, मछली पकडऩे से संबंधित उपकरण झिटके, बूटी, मोरपंख का ढाल, मेला, झंडा (जेरी) लगाना,मदिरा निर्माण,कडरकी, चन्दरहार, हमेर जेवर, कोरकू जनजाति का मरोणपरांत स्तम्भ, लोह निर्माण और मेघनाथ के प्रदर्शन के जीवंत दृश्य वास्तविक जैसे दिखते हैं।
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इनका कहना है…
बादल भोई राज्य संग्रहालय में अंतिम निर्माण कार्य इस समय तेजी से हो रहा है। इस कार्य में ट्राइ के कलाकार लगे हुए है। इस संग्रहालय को जल्द ही प्रधानमंत्री के हाथों उद्घाटन होना है।
-नीतिराज सिंंह, संयुक्त निदेशक, टीआरआइ
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Hindi News / Chhindwara / पीएम मोदी जब करेंगे उद्घाटन, तब तक तैयार हो जाएगा यह संग्रहालय