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छिंदवाड़ा

कोयला, चंदन और मिट्टी से होता था राम और रावण का शृंगार

छोटी बाजार की श्रीराम लीला 136 वर्ष की हुई

छिंदवाड़ाSep 28, 2024 / 07:41 pm

mantosh singh

छोटी बाजार की श्रीराम लीला 136 वर्ष की हुई

छिंदवाड़ा. छोटा बाजार की श्रीराम लीला में एक समय ऐसा था, जब बिजली नहीं तो मंच पर मशाल से रोशनी की जाती थी। कलाकारों का शृंगार कोयला, चंदन और माटी से होता था। कलाकार संवाद को बगैर माइक के दर्शकों तक पहुंचाते थे। इस वर्ष श्रीराम लीला 136वें वर्ष में प्रवेश कर रही है। यह गौरवशाली क्षण है। तब मौजूदा बुजुर्ग इसके इतिहास को सुनाकर हर किसी को रोमांचित कर देते हैं।
सार्वजनिक श्री रामलीला मण्डल छिंदवाड़ा जिले की सबसे प्राचीन समितियों में से एक है। मण्डल की स्थापना वर्ष 1889 में की गई है। रामलीला मंच छोटी बाजार स्थित ऐतिहासिक श्रीराम मंदिर का भाग है, जिसकी अद्भुत कहानी सभी की जुबां से सुनी जाती रही है। श्रीराम मंदिर का निर्माण अयोध्या से छिंदवाड़ा आए महासंत श्री चौबे बाबा के कारण ही हुआ है। महासंत चौबे बाबा की जीवित समाधि रंगमंच पर स्थित है।
पुराने बुजुर्ग बताते हैं कि रामलीला मंचन प्रारम्भिक दौर में मशालों के माध्यम से होता था। तब मंच पर प्रकाश व्यवस्था की जाती थी। रामलीला का प्रचार डोंडी पीटकर किया जाता था। प्रारंभिक समय में मंच की व्यवस्था नहीं थी। तब बल्लियों एवं पटियों के माध्यम से मंच तैयार किया जाता था। दर्शक स्वयं अपने साथ बैठने के लिए दरी अथवा चादर लेकर आते थे। बुजुर्गों के मुताबिक श्रीरामलीला शनै शनै आधुनिकता की ओर बढ़ती रही। वर्ष 1967-1968 मे रामलीला के स्थायी मंच का निर्माण कराया गया।
एक मंच पर दो लाउड स्पीकर के साथ मंचन किया जाने लगा था। कलाकारों के मेकअप के लिए वाटर कलर का प्रयोग प्रारंभ हुआ। मंच पर प्रकाश व्यवस्था के लिए पेट्रोमेक्स एवं बाद में हैलोजन लाइट का प्रयोग होने लगा। बैकग्राउंड के आकर्षक परदों का प्रयोग प्रारंभ हुआ। रामलीला का मुख्य आकर्षण इसका लाइव संगीत बना। दर्शकों के लिए बैठने के लिए मंडल की ओर से दरी एवं पाल का इंतजाम किया गया। वर्तमान में रामलीला मंचन तीन मंचों के माध्यम से किया जाता है। इसमें एक स्थाई एवं दो अस्थायी मंच शामिल हंै।

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