पुराने बुजुर्ग बताते हैं कि रामलीला मंचन प्रारम्भिक दौर में मशालों के माध्यम से होता था। तब मंच पर प्रकाश व्यवस्था की जाती थी। रामलीला का प्रचार डोंडी पीटकर किया जाता था। प्रारंभिक समय में मंच की व्यवस्था नहीं थी। तब बल्लियों एवं पटियों के माध्यम से मंच तैयार किया जाता था। दर्शक स्वयं अपने साथ बैठने के लिए दरी अथवा चादर लेकर आते थे। बुजुर्गों के मुताबिक श्रीरामलीला शनै शनै आधुनिकता की ओर बढ़ती रही। वर्ष 1967-1968 मे रामलीला के स्थायी मंच का निर्माण कराया गया।
एक मंच पर दो लाउड स्पीकर के साथ मंचन किया जाने लगा था। कलाकारों के मेकअप के लिए वाटर कलर का प्रयोग प्रारंभ हुआ। मंच पर प्रकाश व्यवस्था के लिए पेट्रोमेक्स एवं बाद में हैलोजन लाइट का प्रयोग होने लगा। बैकग्राउंड के आकर्षक परदों का प्रयोग प्रारंभ हुआ। रामलीला का मुख्य आकर्षण इसका लाइव संगीत बना। दर्शकों के लिए बैठने के लिए मंडल की ओर से दरी एवं पाल का इंतजाम किया गया। वर्तमान में रामलीला मंचन तीन मंचों के माध्यम से किया जाता है। इसमें एक स्थाई एवं दो अस्थायी मंच शामिल हंै।