।आजादी के बाद से छिंदवाड़ा संसदीय सीट पर कांग्रेस जीतती आ रही थी। वर्ष 1977 की जनता लहर के बाद भी कांग्रेस छिंदवाड़ा को बचाने में कामयाब रही। पिछले 45 साल से इस सीट पर कमलनाथ और उनके परिवारिक सदस्यों का कब्जा था। वर्ष 1997 के उपचुनाव में भाजपा के स्व. सुंदरलाल पटवा ने कमलनाथ को हराया था। उसके बाद से 2019 तक फिर यह सीट नाथ परिवार के पास रही। तब से भाजपा को बड़ी जीत का इंतजार था। वर्ष 2024 के इस लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 27 साल बाद यह ऐतिहासिक विजय हासिल की।
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नकुलनाथ के हारने के हैं ये 5 कारण
-मध्यप्रदेश की 29 सीटों को लेकर भाजपा के पास नेता, नीति, कार्यकर्ता और संगठन था तो दूसरी तरफ कांग्रेस में ऐसा देखने को नहीं मिला। -पिता कमलनाथ और पुत्र नकुलनाथ चुनाव की तैयारियों में लगे रहे, लेकिन वे अपने स्थानीय नेताओं को एकजुट नहीं रख पाए। -नकुलनाथ की हार में सबसे बड़ा फैक्टर रहा भाजपा का लगातार प्रयास। बीते करीब 5-6 सालों से भाजपा ने छिंदवाड़ा को लेकर रणनीति बनाकर और जिम्मेदारी देकर यहां संगठन से लेकर कार्यकर्ता तक को जोड़े रखा।
-छोटे शहर और गांवों में बरसों से कांग्रेस और कमलनाथ के लिए काम करने वालों का भी बंटी साहू ने दिल जीता, तो दूसरी तरफ नकुलनाथ अपने पिता की छाया से बाहर नहीं निकल पाए। वे आम कार्यकर्ता तक नहीं पहुंच पाए।
-कांग्रेस की हार का एक और कारण था नकुलनाथ की पर्सनालिटी। कमलनाथ के बेटे और सबसे अमीर उम्मीदवार होने के साथ वे लोगों से जल्दी घुलमिल नहीं पाते। वे कार्यकर्ताओं, स्थानीय नेताओं के नाम याद नहीं रख पाते थे। उनकी वीआईपी की तरह विजिट, अपनों से घिरे रहने के कारण नकुलनाथ सांसद रहने के बावजूद सीधे जनता से संवाद नहीं कर पाए. वे जनता और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से वैसा कनेक्ट नहीं बिठा पाए जैसा भाजपा की जिला इकाई के अध्यक्ष विवेक बंटी साहू ने बिठाया।