मेट्रो सिटी की तरह छिंदवाड़ा में महंगी विदेशी शराब से लेकर स्मैक का नशा
-निचले दर्जे से लेकर हाई सोसाइटी तक फंसी, समाज में तनाव से निपटने कर रहे इस्तेमाल
छिंदवाड़ा.मेट्रो सिटी की तरह छिंदवाड़ा में भी महंगी विदेशी शराब से लेकर स्मैक जैसे नशा आम हो गए हैं। निचले दर्जे से लेकर हाई सोसायटी सामाजिक तनाव से निपटने इसका इस्तेमाल कर रही है। इस नशे के कारोबारी इस सामाजिक कमजोरी का फायदा उठा रहे हैं और नई पीढ़ी को इसका बेबस बना रहे हैं। दुख की बात यह है कि नशा निवारण जागरुकता अभियान बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक को इस मकडज़ाल से निकाल नहीं पा रहा है।
आम तौर पर नशे का माध्यम शराब, बीयर, महुआ, भांग, गांजा, तम्बाकूयुक्त पदार्थ जैसे सिगरेट, खैनी, जर्दा, गुटखा, बीड़ी, कफ सीरप, फेन्सीडिल या कोरेक्स, नेल पॉलिश रिमूभर, पेन्ट्स, ड्राई क्लीनींग सोल्यूसन आदि मादक पदार्थ थे। नशा निवारण में लगे डॉक्टरों के मुताबिक स्कूलों में पढऩेवाले बच्चों के पास नामचीन कंपनियों की एक रुपए की मीठी सुपारी पाई जा रही हैं। जिसमें नशे की लत का सूक्ष्म तत्व मौजूद हैं। आगे यह लत बढ़ते-बढ़ते गुटका और तम्बाकू पर आ रही हैं। बच्चे किशोर होते-होते इस नशा में आ जाते हैं। इसका बड़ा कारण मानसिक तनाव, मोबाइल में अत्यधिक लिप्तता है।
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पुलिस की कार्रवाई से उजागर विदेशी शराब-स्मैक
पिछले एक माह मेंं पुलिस ने दो बड़ी कार्रवाइयां की। उसमें ये तथ्य सामने आया कि समाज की हाई सोसाइटी अपने पैसे के बल पर विदेशी महंगी शराब दिल्ली से बुला रही है। इसमें कुछ डॉक्टर्स, व्यापारी और युवाओं के लिप्त होने की जानकारी भी आई है। पुलिस की दूसरी कार्रवाई स्मैक बेचते युवाओं के पकड़ाने की थी। इससे साफ संकेत मिले हैं कि स्मैक का नशा करने वाले लोग भी छिंदवाड़ा में मौजूद है। ये नशा और उसमें लिप्त युवा पीढ़ी सामाजिक चिंता का विषय बनती जा रही है।
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्रवर्ष 2020 से केन्द्र की सूची में छिंदवाड़ा
सरकारी रिकार्ड के अनुसार वर्ष 2020 में केन्द्र सरकार ने नशे में लिप्त 272 जिलों की सूची जारी की थी। इस सूची में मप्र के 15 जिले शामिल हैं। इनमें से छिंदवाड़ा का नाम प्रमुख हैं। देश भर में 21 प्रकार का नशा हैं। सर्वेक्षण में सर्वाधिक नशा छिंदवाड़ा में पाया गया हैं। तब से प्रशासन जागरुकता अभियान चला रहा है। फिर भी इसके अपेक्षित परिणाम नहीं आ पाए हैं।
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स्मैक समेत नशे से समाज को नुकसान
जिले की आबादी इस वक्त 23.74 लाख पहुंच रही हैं। जिल में 34 फीसदी आदिवासी घोषित हैं। आदिवासियों का पेय महुआ शराब परंपरागत रही हैं। इसके साथ ही आबकारी विभाग के देशी-विदेशी शराब पर अर्जित टैक्स के आंकड़े 250 करोड़ रुपए से अधिक हैं। अब तो अनैतिक रूप से स्मैक समेत अन्य नशा सामाजिक प्रचलन में आता जा रहा है। इससे सरकार को आय नहीं मिल रही है। उल्टा ये नशा समाज को अलग दिशा में धकेल रहा है।
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इनका कहना है….
समाज के उच्च वर्ग में विदेशी शराब, स्मैक समेत अन्य नशा के उजागर मामलों से समाज में बढ़ते तनाव और उससे निपटने की कोशिश में नशे का इस्तेमाल का पता चलता है। इस नशे से युवा पीढ़ी भ्रष्ट हो रही है। इसके लिए बच्चों के अभिभावकों को अभी से ही ध्यान देना होगा। तभी समाज में सुधार हो पाएगा। इस मामले मेें पुलिस प्रशासन भी सख्त कार्रवाई करें तो इस अनैतिक कारोबार को रोका जा सकता है।
-डॉ.राहुल श्रीवास्तव, तम्बाकू नियंत्रण अधिकारी।
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