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छतरपुर

नारद मोह और रावण जन्म का हुआ मंचन

राम चरित मानस भवन में देर रात रामलीला मंचन शुरु हुआ। रामलीला का पर्दा भगवान श्री गणेश आरती के साथ के साथ लीला का शुभारंभ हुआ।

छतरपुरSep 29, 2024 / 10:50 am

Dharmendra Singh

ramleela

मंचन करते कलाकार

छतरपुर. दिन भर लगातार हो रही बारिश के कारण देर रात्रि के बाद रामलीला का शुभारंभ हुआ। पहले दिन राम लीला मंच पर नारद मोह और रावण जन्म का मंचन हुआ। शुक्रवार की मध्य रात्रि को नगर स्थित राम चरित मानस भवन में देर रात रामलीला मंचन शुरु हुआ। रामलीला का पर्दा भगवान श्री गणेश आरती के साथ के साथ लीला का शुभारंभ हुआ।

इंद्र का इंद्रासन डोल जाता है

नारद मुनि की तपस्या से इंद्र का इंद्रासन डोल जाता है। उन्हें लगता है कि नारद मुनि वरदान में कहीं भगवान से उनका सिंहासन न मांग लें। इसलिए उनकी तपस्या को भंग करने के लिए वह अप्सराओं और कामदेव को भेजते हैं। यह सभी उनकी तपस्या भंग नहीं कर पाते हैं, जिससे नारद मुनि को अभिमान हो जाता है। समिति के मीडिया प्रभारी पुष्पेन्द्र दीक्षित ने बताया कि इस कथा का मंचन शुक्रवार रात को छतरपुर स्थित रामचरित मानस भवन में श्री अन्नपूर्णा रामलीला समिति के तत्वावधान में चल रही रामलीला के दौरान हुआ। रामलीला के दूसरे दिन नारद मोह और रावण जन्म की कथा दिखाई गई। जिसमें नारद मुनि कामदेव को परास्त करने के बाद अभिमानी हो जाते हैं और भगवान विष्णु के सामने जा पहुंचते हैं।

नारायण से नारद ने मांगा हरि रूप


कामदेव को परास्त करने के अभिमान में नारद मुनि भगवान विष्णु के सामने अभिमानी बातें करते हैं। उनके अभिमान को नष्ट करने के लिए भगवान एक काल्पनिक लोक का निर्माण करते हैं, जिसकी राजकुमारी का स्वयंवर होना होता है। लेकिन राजकुमारी विश्वमोहिनी की शर्त होती है कि वह सिर्फ श्रीहरि से ही विवाह करेगी। नारद मुनि विश्व मोहिनी पर मोहित हो जाते हैं और उनसे विवाह करने के लिए नारायण से उनका हरि रूप मांगते हैं। देवर्षि नारद के कथन अनुसार भगवान उन्हें हरि रूप यानी वानर का रूप प्रदान कर देते हैं। जिसके कारण स्वयंवर में उनका मजाक बनता है। जिसके बाद विश्व मोहिनी भगवान श्रीहरि से विवाह करती है। इस बात से नाराज होकर नारद अपने ईष्ट भगवान नारायण को श्राप देते हैं कि उन्हें धरती पर मानव रूप में आना पड़ेगा और वानर ही उनकी सहायता करेंगे। जिसके बाद भगवान उन्हें बताते हैं कि उन्होंने उनसे हरि रूप मांगा था, न कि श्रीहरि का रूप। हरि का अर्थ वानर होता है। जिसके बाद नारद मुनि को अपनी भूल का अहसास होता है।

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