छतरपुर. शहर के कुछ लोग सडक़ों पर आवारा घूम रहे गोवंश की निरंतर देखभाल करते हुए उनका पेट भरने के लिए चारा खिला रहे हैं। वह अपने निजी खर्च से प्रतिदिन बाजार से चारा खरीदते हैं और गोवंश को खिलाते हैं। इसके लिए उनके द्वारा शहर में विभिन्न स्थानों पर सुबह-शाम झुंड में खड़े होने वाले गोवंश के स्थानों को चिह्नित किया गया है। जिससे उन्हें प्रतिदिन गोवंश यहां मिल जाता है। वह अपने साधन से खुद ही यहां तक चारा पहुंचाते हैं। ऐसे में शहर में आवारा घूम रहे गोवंश का पेट भरता है। यह कार्य वह निस्वार्थ भाव से पिछले कई वर्षों से करते आ रहे है।
आमदनी का 20 फीसदी कर रहे खर्च
शहर के सिंचाई कॉलोनी निवासी मेवाराम शर्मा जो प्राइवेट जॉब करते हैं। इसके साथ ही वह गोवंश की सेवा के लिए अपनी मासिक आय में से 20 प्रतिशत तक की राशि खर्च कर, गोवंश को चारा खिलाते हैं। वह पिछले 26 वर्षों से लगातार गोवंश की सेवा में लगे हुए है। उन्होंने बताया ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले मवेशी तो किसी तरह अपने खाने का इंतजाम कर लेते हैं। शहरी क्षेत्रों में आवारा मवेशी भूख से व्याकुल होकर पॉलीथिन और प्लास्टिक खाते हैं। इसको देखकर उनके मन में गोवंश को चारा खिलाने के लिए प्रेरणा मिली। वह प्रतिदिन शाम के समय 6 बजे अपने घर से निकलते है और बाजार से चारा खरीदने के बाद जिन स्थानों पर जानवरों के झुंड रहते है। वहां पहुंचकर उन्हें चारा खिलाते है। गोवंश की सेवा करना उन्होंने अपनी प्रतिदिन की दिनचर्या में शामिल कर लिया है।
व्यापारी भी कर रहे गोसेवा
इस प्रकार छतरपुर के दो व्यापारी गोवंश को बीते 17 साल से प्रतिदिन शाम के समय हरा चारा खिला रहे हैं। शहर में असाटी मोहल्ले के पवन असाटी और सुनील असाटी प्रतिदिन शाम के समय पुरानी गल्ला मंडी में हरा चारा बेचने वाले किसानों से खरीदी करते हैं। इसके बाद रामचरितमानस मौदान, सरानी दरवाजा बाहर, पठापुरा तिराहा स्थित राम जानकी मंदिर, बस स्टैंड, हटावरा, जवाहर रोड स्थित खेरे की देवी मंदिर में रहने वाले गोवंश को हरा चारा डालते हैं। शुरुआत में यह कार्य वे स्वयं करते थे, लेकिन कुछ साल से एक कर्मचारी के माध्यम से करा रहे हैं। यह कर्मचारी शाम के समय स्कूटी से जाकर बाजार से हरा चारा खरीदता है और इसके बाद व्यापारियों द्वारा बताए स्थान पर डालता है। इस कर्मचारी के आने का समय निश्चित है। इसलिए समय पर आसपास का गोवंश चारा खाने पहुंच जाता है। इस कारण अब इन क्षेत्र के गोवंश को भूखा नहीं भटकना पड़ता और कचरा खाने से भी बच जाते हैं।