बायोप्सी और एफएनएसी क्या है
दो महत्वपूर्ण चिकित्सा परीक्षण हैं, जो शरीर के ऊतकों और कोशिकाओं की जांच के लिए उपयोग किए जाते हैं, खासकर कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों के निदान में। दोनों परीक्षणों का उद्देश्य शरीर के किसी संदिग्ध हिस्से से नमूना लेकर यह पता लगाना है कि क्या उसमें कोई असामान्य कोशिकाएं हैं, जैसे कि कैंसर कोशिकाएं। बायोप्सी एक चिकित्सा प्रक्रिया है जिसमें शरीर के किसी हिस्से, जैसे कि एक गांठ, ट्यूमर, या संदिग्ध ऊतक से एक छोटा नमूना लिया जाता है। यह नमूना माइक्रोस्कोप के तहत विश्लेषण किया जाता है ताकि यह पता चल सके कि वह हिस्सा सामान्य है या उसमें कैंसर या अन्य रोग हैं। एफएनएसी एक सरल, कम-आक्रामक प्रक्रिया है जिसमें एक पतली सुई का उपयोग करके शरीर के संदिग्ध हिस्से से कोशिकाओं का नमूना लिया जाता है। यह प्रक्रिया आमतौर पर सतही गांठों या ट्यूमर का परीक्षण करने के लिए की जाती है।
जिले में एक हजार कैंसर मरीज
जिले में कैंसर के वर्तमान में एक हजार मरीज है। इस गंभीर बीमारी से हर साल 150 से 200 लोगों की मौत हो रही है। कैंसर जांच समय से होने से बीमारी का इलाज आसान हो जाता है। जिले में कैंसर की जांच समय से होने से कई मरीजों की जान बची है। लेकिन जांच को लेकर हो रहे इस गोलमाल से मरीजों की जान पर संकट बन आया है। ग्वालियर कैंसर हॉस्पिटल ने छतरपुर जिले के कैंसर मरीजों की जानकारी मांगी है। प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र स्तर पर कैंसर के चिंहित मरीजों की जानकारी मांगी गई है। ये कवायद इसलिए हो रही है क्योंकि छतरपुर जिले में कैंसर के मरीजों की संख्या काफी है। इन हालात को देखने के वाबजूद जांच जिला अस्पताल में न कराकर बाहर सैंपल भेजना मरीजों के लिए हितकारी नहीं है।
समय से जांच रिपोर्ट भी नहीं मिल पा रही
बायोप्सी और एफएनएसी जैसी जांचें कैंसर के सही निदान के लिए जरूरी होती हैं, लेकिन जिला अस्पताल में मरीजों के सैंपल की जांच न कराए जाने से मरीजों को न केवल आर्थिक बोझ उठाना पड़ता है, बल्कि समय पर जांच न हो पाने से उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ सकता है। कई बार मरीजों को जांच के लिए अन्य शहरों जैसे सागर, झांसी, ग्वालियर या भोपाल तक जाना पड़ता है, जिससे उनकी स्थिति और गंभीर हो सकती है। या बाहर के शहरों में सैंपल भेजना पड़ता है। इस काम में मरीजों को 2 से 3 हजार रुपए तक खर्च करने पड़ रहे हैं।
गरीब मरीजों के लिए सबसे ज्यादा मुसीबत
इस कमी के चलते जरूरतमंद मरीजों को वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और इलाज में देरी हो रही है। यह स्थिति न केवल मरीजों के लिए चुनौतीपूर्ण है, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की आवश्यकता को भी उजागर करती है। सरकार और स्वास्थ्य विभाग को इस मुद्दे को गंभीरता से लेकर जिला अस्पताल के मरीजों के ऑपरेशन के बाद जिला अस्पातल में ही कैसंर की सैंपलिंग व जांच कराना चाहिेए। ताकि मरीजों को बेहतर और सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें।
डॉक्टरों के कमीशन सेट
कमीशन के लिए डॉक्टरों द्वारा मरीजों के सैंपल्स को निजी लैब्स में भेजने की प्रवृत्ति एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। छतरपुर समेत कई अन्य स्थानों पर आरोप है कि कुछ डॉक्टर अपने वित्तीय लाभ के लिए सैंपल्स को बाहर की निजी लैब्स में भेज रहे हैं, जबकि स्थानीय स्तर पर सैंपलिंग व जांच कराई जा सकती है। इस प्रक्रिया में मरीजों को अधिक पैसे खर्च करने पड़ते हैं, क्योंकि डॉक्टरों को इन लैब्स से कमीशन मिलता है।
मरीजों पर पड़ रहा ये असर
बाहर की लैब्स में जांच की कीमतें अधिक होती हैं, जिससे गरीब और मध्यमवर्गीय मरीजों को अनावश्यक आर्थिक बोझ उठाना पड़ता है। जांच प्रक्रिया के लिए दूर के स्थानों पर जाने से इलाज में देरी हो सकती है, जिससे बीमारी की स्थिति गंभीर हो सकती है। यह स्थिति डॉक्टरों की नैतिकता और चिकित्सा क्षेत्र की विश्वसनीयता पर सवाल उठाती है।
फैक्ट फाइल
आबादी- 20 लाख
जिला अस्पताल की बेड क्षमता- 450
ऑपरेशन रोजाना- 4 से 6
कैसंर जांच की आवश्यकता- हर मरीज को
इनका कहना है
कैंसर जांच के संबंध में सिविल सर्जन से बात करता हूं। स्थानीय स्तर पर जांच की सुविधा का मरीजों को लाभ मिले इसका ध्यान रखा जाएगा।
डॉ. आरपी गुप्ता, सीएमएचओ