बच्चों की जान जोखिम में
बच्चें अच्छी पढ़ाई करें,इसके लिए हर अभिभावक हमेशा तत्पर रहता है। आर्थिंक हैसीयत से बढक़र खर्च करते हैं, ताकि बच्चे पढ़लिखकर अपना भविष्य बना सकें। बच्चों की पढ़ाई पर तो सभी ध्यान देते हैं। लेकिन बच्चों को स्कूल भेजने के लिए उपयोग होने वाली बसों और ऑटो रिक्शा को लेकर ज्यादतर लोग सजग नहीं रहते हैं। बसों की स्थिति कैसी है,ड्राइवर फिट है या नहीं,इसको लेकर न तो प्राशासन की ओर से कोई जांच होती है। न ही बच्चों के अभिभावक इस ओर ध्यान देते हैं। सभी स्कूलों में बच्चे बसों के अलावा ऑटो रिक्शा से भी जाते हैं। ज्यादातर रिक्शा ओवरलोड चलते हैं। लगभग सभी स्कूलों में संबंध होकर या कुछ अभिभावकों द्वारा अलग से ऑटो लगाए जाते हैं। इन ऑटो से बच्चे स्कूल जाते और आते हैं। क्षमता से ज्यादा बच्चे भरकर चलने वाले इन ऑटो की न तो जांच होती है,न ही इन्हें कोई रोकता-टोकता है। स्कूल आने-जाने के समय शहर की किसी भी सडक़ पर ऑटो में लटकर जाते स्कूली बच्चे नजर आ जाएंगे। जबकि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार वन प्लस फाइव सिटिंग ही ऑटो में हो सकती है। पटिया लगाकर या लटकार बच्चों को नहीं ले जाया जा सकता है। लेकिन भारी भरकम फीस जमाकरने के बावजूद बच्चे जोखिम उठाकर स्कूल आ-जा रहे हैं।
बच्चें अच्छी पढ़ाई करें,इसके लिए हर अभिभावक हमेशा तत्पर रहता है। आर्थिंक हैसीयत से बढक़र खर्च करते हैं, ताकि बच्चे पढ़लिखकर अपना भविष्य बना सकें। बच्चों की पढ़ाई पर तो सभी ध्यान देते हैं। लेकिन बच्चों को स्कूल भेजने के लिए उपयोग होने वाली बसों और ऑटो रिक्शा को लेकर ज्यादतर लोग सजग नहीं रहते हैं। बसों की स्थिति कैसी है,ड्राइवर फिट है या नहीं,इसको लेकर न तो प्राशासन की ओर से कोई जांच होती है। न ही बच्चों के अभिभावक इस ओर ध्यान देते हैं। सभी स्कूलों में बच्चे बसों के अलावा ऑटो रिक्शा से भी जाते हैं। ज्यादातर रिक्शा ओवरलोड चलते हैं। लगभग सभी स्कूलों में संबंध होकर या कुछ अभिभावकों द्वारा अलग से ऑटो लगाए जाते हैं। इन ऑटो से बच्चे स्कूल जाते और आते हैं। क्षमता से ज्यादा बच्चे भरकर चलने वाले इन ऑटो की न तो जांच होती है,न ही इन्हें कोई रोकता-टोकता है। स्कूल आने-जाने के समय शहर की किसी भी सडक़ पर ऑटो में लटकर जाते स्कूली बच्चे नजर आ जाएंगे। जबकि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार वन प्लस फाइव सिटिंग ही ऑटो में हो सकती है। पटिया लगाकर या लटकार बच्चों को नहीं ले जाया जा सकता है। लेकिन भारी भरकम फीस जमाकरने के बावजूद बच्चे जोखिम उठाकर स्कूल आ-जा रहे हैं।
जांच के लिए नहीं लगता कोई कैंप
प्रदेश के बड़े शहरों में परिवहन और पुलिस विभाग द्वारा स्कूल बसों की जांच के कैंप लगाए जाते हैं। बसों की फिटनेस,इमरजेंसी दरवाजे की स्थिति,फस्ट एड बॉक्स समेत ड्राइवर की नजर और हेल्थ की भी जांच की जाती है। फिट पाई जाने वाली बसों के लिए परिवहन विभाग द्वारा फिट का सर्टीफिकेट भी दिया जाता है। लेकिन छतरपुर शहर में बसों की जांच के लिए कोई व्यवस्था ही नहीं है। ऑटो रिक्शा की बात करें तो,उनके ओवरलोड चलने की न तो ट्रैफिक पुलिस जांच करती है,न उन्हें ताकीद दी जाती है। बच्चे ऑटो में कितने सुरक्षित हैं,इसको लेकर प्रशासनिक मशीनरी भी कोई ध्यान नहीं देती है।
प्रदेश के बड़े शहरों में परिवहन और पुलिस विभाग द्वारा स्कूल बसों की जांच के कैंप लगाए जाते हैं। बसों की फिटनेस,इमरजेंसी दरवाजे की स्थिति,फस्ट एड बॉक्स समेत ड्राइवर की नजर और हेल्थ की भी जांच की जाती है। फिट पाई जाने वाली बसों के लिए परिवहन विभाग द्वारा फिट का सर्टीफिकेट भी दिया जाता है। लेकिन छतरपुर शहर में बसों की जांच के लिए कोई व्यवस्था ही नहीं है। ऑटो रिक्शा की बात करें तो,उनके ओवरलोड चलने की न तो ट्रैफिक पुलिस जांच करती है,न उन्हें ताकीद दी जाती है। बच्चे ऑटो में कितने सुरक्षित हैं,इसको लेकर प्रशासनिक मशीनरी भी कोई ध्यान नहीं देती है।
अप्रेल २०१८ में लागू हुए थे नियम
सरकार द्वारा जारी निर्देशों में कहा गया है कि स्कूल में वाहन संचालन के लिए ेएक समिति बनाई जाएगी। संस्था के प्राचार्य समिति के संयोजक होंगे। यह समिति स्कूली बसों की जानकारी का रेकॉर्ड रखेगी। जिन वाहनों से बच्चों का परिवहन किया जा रहा है,उनके मानकों और गुणवत्ता के बारे में भी समिति जानकारी रखेगी।इसके अलावा, वाहनों में बच्चों की अधिकतम संख्या, स्कूल वाहन के परिसर के अंदर तक आने की व्यवस्था और सीट बेल्ट सहित अन्य सुरक्षा मानकों आदि की व्यवस्था के बारे में भी समिति जानकारी रखेगी।
सरकार द्वारा जारी निर्देशों में कहा गया है कि स्कूल में वाहन संचालन के लिए ेएक समिति बनाई जाएगी। संस्था के प्राचार्य समिति के संयोजक होंगे। यह समिति स्कूली बसों की जानकारी का रेकॉर्ड रखेगी। जिन वाहनों से बच्चों का परिवहन किया जा रहा है,उनके मानकों और गुणवत्ता के बारे में भी समिति जानकारी रखेगी।इसके अलावा, वाहनों में बच्चों की अधिकतम संख्या, स्कूल वाहन के परिसर के अंदर तक आने की व्यवस्था और सीट बेल्ट सहित अन्य सुरक्षा मानकों आदि की व्यवस्था के बारे में भी समिति जानकारी रखेगी।