छतरपुर. जिले में ग्रामीण विकास विभाग ने अब तक 105 ग्राम पंचायतों में गोशालाओं का निर्माण पूरा करा लिया है। यह गोशालाएं मवेशियों को रखने के लिए तैयार हैं। जिला पंचायत की ओर से 69 गोशालाओं को पशुचारा के लिए राशि का भुगतान भी किया जा चुका है। इनमें से 29 गोशालाओं को तो चारे के लिए दो किस्त भी जारी हो चुकी हैं लेकिन इतनी सारी गोशालाएं तैयार होने के बावजूद अब भी मवेशी सडक़ों पर ही घूम रहे हैं। इस कारण से सडक़ों पर गौवंश के कारण हादसे हो रहे हैं। साथ ही किसान भी परेशान हैं।
बारिश में हर महीनें 500 की मौत
गौशालाओं में सहारा न मिलने से अधितांश गौ-वंश सडक़ों पर रहते हैं, जिससे ट्रैफिक जाम और सडक़ दुर्घटनाएं हो रही हैं। दुर्घटनाएं रोज हो रही हैं, जिससे इंसान घायल हो रहे हैं, कई बार जान भी जा रही है। गौ-वंश या तो घायल होकर जिंदगीभर के लिए अपाहिज हो जाते हैं, जिससे धीरे-धीरे उनकी मौत हो जाती है, या दुर्घटना के दिन ही मारे जाते हैं। छतरपुर जिले में ही हर साल तमाम छोटे-बड़े हादसों के कारण 500 से ज्यादा गौवंश की मृत्यु की घटनाएं सामने आ रही हैं। हालांकि हादसों के आंकड़ों का कोई सरकारी संग्रहण नहीं किया जा रहा है लेकिन गौसेवा के लिए काम करने वाले गौ चिकित्सक बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में हादसों के कारण बड़ी संख्या में गौवंश मारा जा रहा है। छतरपुर में गौ चिकित्सालय संचालित करने वाले रविराज सिंह ने बताया कि हर साल लगभग 500 से 700 गायों का वे उपचार कर रहे हैं जिनमें 500 से ज्यादा गाय मारी जा रही हैं।
सडक़ पर बैठने से हो रहे हादसे
गायों के मरने के आंकड़े बरसात के सीजन में तेजी से बढ़ जाते हैं। आवारा गौवंश खेतों की जगह सूखी हुई सडक़ों पर बैठता है जहां तेज रफ्तार वाहनों के कारण इनकी जान चली जाती है। कई बार हादसों के कारण वाहन चालक भी मारे जाते हैं। इनके भी वर्गीकृत आंकड़े यातायात पुलिस के द्वारा एकत्रित नहीं किए जा रहे। कुल मिलाकर सडक़ों पर होने वाले हादसों का यह सिलसिला तब तक नहीं थम सकता जब तक इस गौवंश के पुर्नस्थापन के लिए कोई ठोस कदम न उठाए जाएं।
105 गौशालाएं, लेकिन नहीं मिल रहा सहारा
जिले के गौवंश के पालन के लिए गोशालओं का निर्माण किया गया है। पूरे जिले में 170 गोशालाएं स्वीकृति हुई, जिसमें से 105 बन चुकीं हैं, लेकिन जो गोशालाएं बनकर तैयार हो गई है। उनमें गोवंश को सहारा नहीं मिल पा रहा है। कुछ गोशालाएं तो शुरु होने के बाद बंद हो गई। ऐसे में लाखों रुपए खर्च के बाद भी गोवंश सडक़ों में मारे-मारे फिर रहे हैं। गोवंश हर रोड़ सडक़ दुर्घटनाओं के शिकार हो रहे हैं। इन घटना में गौवंश के साथ-साथ वाहन चालकों को भी छति हो रहे हैं।
2019 से हर साल बन रही गोशालाएं
छतरपुर जिले में वर्ष 2019-20 में ग्राम पंचायतों में लगभग 29 गौशालाएं 28 लाख की लागत से बनाई गई थीं। इनमें बकस्वाहा में 4, बड़ामलहरा में 3, बिजावर में 5, राजनगर में 4, छतरपुर में 3, नौगांव में 6, गौरिहार में एक, लवकुशनगर में 3 गौशालाएं बनाई गई हैैं। वहीं वर्ष 2020-21 में करीब 70 से अधिक गौ-शालाएं मनरेगा से बनाई गई हैं। फिर भी गौ-वंश को आसरा नहीं मिल पा रहा है।
अनुदान वाली 12 गोशालाएं
छतरपुर जिले में लगभग साढ़े 5 लाख गोवंश हैं, जिसमें ज्यादातर आवारा है। जिले में 12 गौशालाएं अनुदान से संचालित हैं जिन्हें 20 रूपए प्रति जानवर प्रति दिन के हिसाब से सरकार द्वारा अनुदान दिया जाता है। हालांकि इनमें से सिर्फ 8 गौशालाएं ही ऐसी हैं जो सही तरीके से संचालित हो रही हैं। ये 8 गौशालाएं जिला मुख्यालय के नजदीक ग्राम राधेपुर, महोबा रोड पर स्थित दयोदय गौशाला, बारीगढ़ क्षेत्र में धंधागिरी गौशाला, सिजई में परमानंद गौशाला, लवकुशनगर क्षेत्र में कन्हैया गौशाला, नौगांव क्षेत्र में बुन्देलखण्ड गौशाला, बक्स्वाहा में पड़रिया गौशाला एवं बिजावर के ग्राम गुलाट में नंदिनी गौशाला शामिल है। इनमें से दो बुन्देलखण्ड गौशाला एवं सिजई की परमानंद गौशाला में साढ़े चार सौ से अधिक मवेशी रहते हैं।
गौवंश की सेवा कर रहे संस्थान, सरकारी मदद से दूर
छतरपुर जिले में अनेक संस्थान ऐसे भी हैं जो बगैर सरकारी मदद के गौवंश की सेवा कर रहे हैं। छतरपुर के साईं मंदिर के समीप गौसेवक रविराज सिंह और उनकी 15 सदस्यीय टीम एक गौ चिकित्सालय चला रही है। यह टीम सडक़ों पर हादसों के शिकार गौवंश की सूचना मिलने पर अपने वाहन से उसका रेस्क्यू करते हैं और फिर उसे उपचारित करते हैं। रविराज सिंह बताते हैं कि 15 सदस्य आपस में सेवा का समय निर्धारित कर लेते हैं एवं पशु चिकित्सक डॉ. दिनेश गुप्ता के मार्गदर्शन में गायों का उपचार करते हैं।