हल्की और कम लागत वाली स्वदेशी तकनीक और अभिकल्प से तैयार यह पीटीसी (PTC) देश की विभिन्न जलवायु के अनुकूल होगा। इसका उपयोग उष्मा उपयोगों के सापेक्ष किया जा सकेगा। इस पीटीसी का सबसे अधिक लाभ सौर ऊर्जा (solar energy) के क्षेत्र में उपकरण बनाने वाले निर्माताओं को होगा जो अब उच्चतर दक्षता वाले उपकरणों का निर्माण कर सकेंगे।
पीटीसी को विकसित करने वाली टीम के सदस्य और आइआइटी मद्रास के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग प्रोफेसर के. श्रीनिवास रेड्डी का कहना है कि ऊर्जा सेक्टर में सौर ऊर्जा की खासी मांग है। खासकर कांसेंट्रेटेड सोलर पावर (सीएसपी) तकनीक से ताप और ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने इस उत्पाद की ऑप्टिकल और थर्मल क्षमता को पूरी तरह परख लिया है। निर्वात और वात में ऑप्टिकल क्षमता क्रमश: ७२ व ६८ प्रतिशत है।
पीटीसी प्रणाली
पीटीसी उपकरण सौर ऊर्जा को एक खास जगह पर केंद्रित करता है। वहां से सौर ऊर्जा का रूपांतरण उष्मा और विद्युत ऊर्जा में होता है। इस प्रणाली में रिफ्लेक्टर, रिसीवर, सपोर्टिंग स्ट्रक्चर व ट्रेकिंग यूनिट का उपयोग हुआ है। इस प्रणाली में फोकल लाइन में रखा रिसीवर सूर्य की विकिरणों को अवशोषण करता है और इसकी उष्मा द्रव को उबालने का कार्य करती है। द्रव से निकलने वाली भाप से टर्बाइन व जेनरेटर चलता है जिनसे बिजली पैदा होती है।