इन क्षेत्रों में विलायती बम्बूलों को हटाने के बाद बरसात के साथ ही पौधे लगाने का काम अंतिम चरण में है व शीघ्र ही ग्रास का मैदान विकसित करने का काम भी शुरु हो जाएगा। प्रथम चरण में कालदां के निकट मोचडिय़ां के देवनारायण स्थल पर तीन सौ बीघा में ग्रासलैंड विकसित करने का काम चल रहा है। यहां 8 हजार बेर के साथ 2 हजार छायादार पौधे लगाए जा रहे हैं। साथ ही ग्रास को मिट्टी में मिलाकर पूरे क्षेत्र में छिडक़ाव किया जाएगा, ताकि गास का मैदान विकसित हो सके। वन विभाग कालदां में मानवीय गतिविधियों को कम कर इन्
हें वन्यजीवों के लिए अच्छे आश्रयस्थल के रूप में विकसित करने का काम भी हाथ मे लिया है। कालदां के जंगल में प्राकृतिक जल-स्रोतों की भरमार
जिले के सुदूर दुर्गम पहाड़ी इलाकों में गर्मियों में भी जल उपलब्धता वाले जल स्रोत जैव-विविधता के वाहक होने के साथ-साथ आम-जन के प्रमुख आस्था केंद्र के रूप में भी उभरे हैं। इनमें पहाड़ी चोटी पर स्थित कालदां माताजी का स्थान प्रमुख है जहां भीषण अकाल में भी पानी का एक बड़ा दह भरा रहता हैं तथा प्राकृतिक रूप से यहां चट्टानों से पानी निकलता है। इसी कारण इसका नाम कालदह पड़ा जो अब कालदां वन खण्ड के रूप में जाना जाता है। इसी पहाड़ी पर उमरथुणा के निकट केकत्या महादेव, सथूर के निकट देवझर महादेव, आम्बा वाला नाला, डाटूंदा के पास दुर्वासा महादेव, पारा का देवनारायण, नारायणपुर के पास धूंधला महादेव, खीण्या-बसोली के पास आम्बारोह, भीमलत महादेव, नीम का खेड़ा के पास झरोली माताजी, खेरूणा के नीलकंठ महादेव आदि स्थान सदाबहार जलयुक्त होने के कारण सदियों से ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहे व आज तक आस्था के प्रमुख केंद्र बने हुए हैं।
जिले के सुदूर दुर्गम पहाड़ी इलाकों में गर्मियों में भी जल उपलब्धता वाले जल स्रोत जैव-विविधता के वाहक होने के साथ-साथ आम-जन के प्रमुख आस्था केंद्र के रूप में भी उभरे हैं। इनमें पहाड़ी चोटी पर स्थित कालदां माताजी का स्थान प्रमुख है जहां भीषण अकाल में भी पानी का एक बड़ा दह भरा रहता हैं तथा प्राकृतिक रूप से यहां चट्टानों से पानी निकलता है। इसी कारण इसका नाम कालदह पड़ा जो अब कालदां वन खण्ड के रूप में जाना जाता है। इसी पहाड़ी पर उमरथुणा के निकट केकत्या महादेव, सथूर के निकट देवझर महादेव, आम्बा वाला नाला, डाटूंदा के पास दुर्वासा महादेव, पारा का देवनारायण, नारायणपुर के पास धूंधला महादेव, खीण्या-बसोली के पास आम्बारोह, भीमलत महादेव, नीम का खेड़ा के पास झरोली माताजी, खेरूणा के नीलकंठ महादेव आदि स्थान सदाबहार जलयुक्त होने के कारण सदियों से ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहे व आज तक आस्था के प्रमुख केंद्र बने हुए हैं।
भालू व पेंथर का बढ़ चुका कुनबा
रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व के बफर जोन में परम्परागत जलस्रोतों पर 12 माह पानी की उपलब्धता मूक प्रणियों के जीवन का आधार बने हुए हैं। कालदां क्षेत्र में कई प्राकृतिक जल-स्रोत हैं जिनमें 12 माह पानी रहता है। यहां देवझर महादेव से भीमलत महादेव के दुर्गम पहाड़ी जंगलों में भी डेढ़ दर्जन से अधिक स्थानों पर भीषण गर्मी में भी कल-कल पानी बहता रहता है।
साल भर दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में जल उपलब्धता के चलते मूक प्रणियों के लिए बूंदी के जंगल सदियों से प्रमुख आश्रय-स्थल बने हुए हैं। इनमें से कई प्राकृतिक जल-स्रोत तो पहाड़ी की चोटियों पर है, जिनमें भीषण गर्मी में भी जल प्रवाह बना रहता हैं। जल उपलब्धता के कारण जिले में भालू, पेंथर सहित अन्य वन्यजीवों का कुनबा बढा है तथा इलाका फिर से बाघों से आबाद होने लगा है।
रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व के बफर जोन में परम्परागत जलस्रोतों पर 12 माह पानी की उपलब्धता मूक प्रणियों के जीवन का आधार बने हुए हैं। कालदां क्षेत्र में कई प्राकृतिक जल-स्रोत हैं जिनमें 12 माह पानी रहता है। यहां देवझर महादेव से भीमलत महादेव के दुर्गम पहाड़ी जंगलों में भी डेढ़ दर्जन से अधिक स्थानों पर भीषण गर्मी में भी कल-कल पानी बहता रहता है।
साल भर दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में जल उपलब्धता के चलते मूक प्रणियों के लिए बूंदी के जंगल सदियों से प्रमुख आश्रय-स्थल बने हुए हैं। इनमें से कई प्राकृतिक जल-स्रोत तो पहाड़ी की चोटियों पर है, जिनमें भीषण गर्मी में भी जल प्रवाह बना रहता हैं। जल उपलब्धता के कारण जिले में भालू, पेंथर सहित अन्य वन्यजीवों का कुनबा बढा है तथा इलाका फिर से बाघों से आबाद होने लगा है।