रोटरी मुक्तिधाम के अध्यक्ष के.सी.वर्मा ने बताया कि बूंदी शहर में पांच मुक्तिधाम है। उनमें औसत एक माह में करीब 50 से 60 अंत्येष्टि होती है। एक अंत्येष्टि में करीब पांच से छह क्विंटल लकड़़ी का उपयोग होता है। ऐसे में एक माह में 300 क्विंटल से अधिक लकड़ी चाहिए,जो गौ काष्ठ का उपयोग करने पर बच सकती है। वर्मा के अनुसार एक अंत्येष्टि में करीब दो पेड़ की लकड़ी उपयोग होता है। अब गोशाला में गोकाष्ठ बनने से पेड़ों की कटाई में विराम लगेगा। विभागीय अधिकारी के अनुसार एक अनुमान के मुताबिक 1 क्विटंल गोबर से 1 क्विंटल गोकाष्ठ बनाई जा सकती है।
गोकाष्ठ का उपयोग श्मशान में अंतिम संस्कार के लिए किया जा सकता है। इसके साथ ही होलिका दहन,यज्ञ जैसे धार्मिक आयोजनों सहित फैक्ट्री व रेस्टोरेंट आदि में किया जा सकता है। गांव में गोकाष्ठ का उपयोग कंडों की जगह खाना बनाने में किया जा सकता है। इससे ज्यादा धुआं नहीं निकलता। प्रदेश की गोशालाओं में पहली बार गोकाष्ठ बनाया जाएगा। अधिकारियों के अनुसार सरकार के इस प्रयोग से गोशालाओं में आय बढ़ेगी। साथ ही गोशालाओं का सवंर्दन होगा।
बूंदी जिले में 23 गोशाला है। इनमें से 600 से अधिक गोवंश वाली तीन गोशाला गोपाल गोशाला डाबी, बड़ा रामद्वारा गोशाल नैनवां रोड व जयनिवास गोशाला ठीकरदा इसमें शामिल है। इसमें गोबर एकत्रित होगा, उसका गोकाष्ठ बनाया जाएगा। 13 दिसंबर को गोकाष्ठ मशीन को जिले में भेजा जाएगा।
गोशालाओं को गोकाष्ठ मशीन उपलब्ध कराने से आय अर्जित होगी। एक मशीन 75 हजार रुपए की लागत आएगी। इसमें 20 फीसदी गोशाला प्रबंधक और 80 फीसदी गोपालन विभाग देगा। इससे गोशालाओं को आर्थिक संबल मिलेगा। जिले की तीन गौशालाओं का इस योजना में चयन हुआ है। गौ काष्ठ का उपयोग धार्मिक रूप से करने के साथ मुक्तिधाम में अंत्येष्टि के लिए और उद्योगों में भी किया जा सकता है।
डॉ.रामलाल मीणा, संयुक्त निदेशक,पशुपालन विभाग, बूंदी