गानों के दम पर डायमंड जुबली
मोहम्मद रफी के अलावा नूरजहां, सुरैया, शमशाद बेगम, जोहराबाई और सुरेंद्र की आवाजों से लैस ‘अनमोल घड़ी’ में संगीतकार नौशाद के साथ तनवीर नकवी ने ‘आ जा मेरी बर्बाद मोहब्बत के सहारे’, ‘क्या मिल गया भगवान तुम्हें दिल को दुखाके’ और ‘उडऩखटोले पे उड़ जाऊं’ के जरिए भी ऐसा जादू जगाया कि सुरों के उडऩखटोले में सवार होकर इस फिल्म ने डायमंड जुबली मनाई। बरसों बाद ‘अनमोल घड़ी’ की कहानी पर करीना कपूर और तुषार कपूर को लेकर ‘जीना सिर्फ मेरे लिए’ (2002) बनाई गई, लेकिन मूल फिल्म जैसी कामयाबी इसके हिस्से में नहीं आई।
लिखने वाले थे ‘मुगले-आजम’ के गीत
के. आसिफ ‘मुगले-आजम’ के गीत तनवीर नकवी से लिखवाना चाहते थे। उन्होंने इस फिल्म के लिए एक गीत ‘कहां तक सुनोगे, कहां तक सुनाऊं/ हजारों ही शिकवे हैं, क्या-क्या बताऊं’ लिखा भी, लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि वे फिल्म से अलग हो गए। यह गीत बाद में नूरजहां ने पाकिस्तानी फिल्म ‘अनारकली’ (1957) के लिए गाया। इसे उनके सदाबहार गीतों में गिना जाता है। तनवीर नकवी आम आदमी के दुख-दर्द, खुशी और उमंग को सादगी से रचते थे, इसलिए हर किसी को यह अपने दिल की आवाज लगते हैं। ‘मल्लिका’, ‘यासमीन’, ‘कारवां’, ‘बड़े घर की बहू’, ‘नई दुनिया’, ‘मि. एक्स’, ‘कैप्टन किशोर’, ‘रुखसाना’ आदि कई फिल्मों के दर्जनों गीत उनकी व्यापक रेंज की सनद हैं।
गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दोबारा..
दिलीप कुमार की ‘जुगनू’ में ‘यहां बदला वफा का बेवफाई के सिवा क्या है’ लिखकर विभाजन के बाद तनवीर नकवी पाकिस्तान चले गए, लेकिन हिन्दी सिनेमा ने उनके साथ बेवफाई नहीं की। उन्हें कई फिल्मों के गीत लिखने बुलाया गया। उन्होंने दोनों देशों की करीब 200 फिल्मों में गीत लिखे। उन्हीं के साथ पाकिस्तान गईं नूरजहां को वहां मल्लिका-ए-तरन्नुम के तौर पर स्थापित करने में भी उनका अहम योगदान रहा। ‘शीरीं फरहाद’ के लिए सदाबहार ‘गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दोबारा’ लिखने वाले तनवीर नकवी की 54 साल की जिंदगी का सफर लाहौर में एक नवम्बर, 1972 को थम गया। ‘शीरीं फरहाद’ के संगीतकार एस. मोहिन्दर का भी पिछली 6 सितम्बर को मुम्बई में देहांत हो चुका है।