मुम्बई के फ्लैट में अकेली वर्तिका तिवारी
‘दिल्ली क्राइम’ और ‘मिर्जापुर’ में अदाकारी के जौहर दिखाने वाले राजेश तैलंग ने बतौर निर्देशक 15 मिनट की ‘त्रिवेदी जी’ में हुनर की नई बानगी पेश की है। यह कि किसी शॉर्ट फिल्म के माहौल में धड़कनें कैसे पैदा की जाती हैं। यह माहौल भारत में पिछले साल 68 दिन के लॉकडाउन के दौरान मुम्बई के एक फ्लैट का है। एक युवती (वर्तिका तिवारी) फ्लैट में अकेली रहती है। लॉकडाउन के शुरुआती कुछ दिन वह कभी अपने एलोवेरा के पौधे (इसका नाम उसने त्रिवेदी जी रखा हुआ है) से बातचीत, तो कभी ‘छूटा मोरा पनघट, छूटी रे बजरिया/ पर मैं क्यों फेड-अप हुई रे गुजरिया’ पर डांस करते हुए खुद को बहलाती है। फिर जैसे-जैसे फ्लैट के आसपास कोरोना के मरीज मिलते हैं, वह तनाव, उलझन और आशंकाओं से घिरती जाती हैै। एक गजल ‘कल चौदहवीं की रात थी, शब भर रहा चर्चा तेरा/ कुछ ने कहा ये चांद है, कुछ ने कहा चेहरा तेरा’ सुनाई देने पर उसके अंदर की बर्फ चेहरे पर पिघलने लगती है।
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हर किसी के लिए जाना-पहचाना माहौल
जाहिर है, ‘त्रिवेदी जी’ में कोई कहानी नहीं है। फिर भी छोटे-छोटे ब्योरों से फिल्म छलछलाती है। कई दृश्य संवेदनाओं को झनझना जाते हैं। हर किसी को इसका माहौल जाना-पहचाना लगता है, क्योंकि हर कोई लॉकडाउन के दौरान किसी न किसी रूप में ऐसे माहौल से दो-चार हुआ था।
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मोबाइल के जरिए पर्दे पर कमाल
किरदार के नाम पर ‘त्रिवेदी जी’ में सिर्फ वर्तिका तिवारी हैं। लाजवाब अदाकारी है। होनी भी चाहिए। आखिर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से हुनर तराश कर आई हैं। भदोही (उत्तर प्रदेश) के किसान परिवार से ताल्लुक रखती हैं। इसलिए उनकी आधुनिकता में भी देशी रंग हैं। वह आलिया भट्ट की ‘राजी’ में नजर आई थीं, लेकिन ‘त्रिवेदी जी’ ने उन्हें नई पहचान दी है। यह फिल्म उन्होंने राजेश तैलंग के साथ मिलकर लिखी भी है। दोनों ने इंसान की अपराजेय जिजीविषा को निहायत सलीके से पर्दे पर उतारा है। लॉकडाउन के दौरान फिल्मों को मोबाइल से शूट करने का नया सिलसिला शुरू हुआ है। ‘त्रिवेदी जी’ इसी तरह शूट की गई। यकीन नहीं होता कि मोबाइल के जरिए पर्दे पर ऐसे कमाल भी रचे जा सकते हैं। फोटोग्राफी बहुत उम्दा है। कुछ जगह बैकग्राउंड की आवाजें जरूर दबी-दबी-सी महसूस होती हैं।