दरियागंज में थी जूस की दुकान
गुलशन कुमार अपने पित चंद्र भान की जूस की दुकान पर काम करते थे। उनकी दुकान दिल्ली के दरियागंज में थी। हालांकि गुलशन के मन में कुछ और ही चल रहा था। उन्होंने जूस की दुकान छोड़ कैसेट्स की एक दुकान दिल्ली में ही खोल ली। सस्ती कैसेट्स बेचते—बेचते उन्होंने इस दुकान को म्यूजिक कंपनी ‘सुपर कैसेट्स इंडस्ट्री में बदल दिया। आडियो कैसेट्स की सेल और एक्सपोर्ट के चलते उनका व्यापार तेजी से बढ़ने लगा। इसे कंपनी का रूप देने के बाद वे मुंबई चले गए और वहां जाकर अपने काम का विस्तार किया। गुलशन ने भक्ति संगीत पर ध्यान दिया और राष्ट्रीय से लेकर क्षेत्रीय भक्ति गीतों के व्यापार पर एकछत्र राज किया।
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इन फिल्मों के संगीत ने खोली किस्मत
गुलशन कुमार की किस्मत बॉलीवुड फिल्म ‘लाल दुपट्टा मलमल का’ से खुली। 1989 में रिलीज इस फिल्म ने तहलका मचा दिया। इसके गाने काफी लोकप्रिय हुए। 1990 में ‘आशिकी’ और 1991 में आमिर खान स्टारर ‘दिल है कि मानता नहीं’ से उन्होंने बॉलीवुड संगीत की दुनिया पर कब्जा सा कर लिया। उन्होंने सोनू निगम, अनुराधा पौडवाल और कुमार सानू जैसे सिंगर्स को ब्रेक भी दिया। उनकी कड़ी मेहनत से टी सीरीज कंपनी 10 सालों में 3 अरब की कंपनी बन गई।
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मंदिर के बाहर हुई हत्या
12 अगस्त, 1997 को टी-सीरीज के संस्थापक गुलशन कुमार की हत्या कर दी गई। उस समय वह मंदिर जा रहे थे। उनकी शरीर में 16 गोलियां दागी गई। उनकी हत्या के पीछे नदीम सैफी का हाथ बताया गया। कहा जाता है कि नदीम अपने सोलो एल्बम ‘है अजनबी’ की मार्केटिंग और प्रचार से खुश नहीं थे और एल्बम की असफलता की वजह गुलशन कुमार को मानते थे। गुलशन कुमार को अंडरवर्ल्ड से भी धमकी भरे कॉल्स आते थे और उनसे 10 करोड़ की रकम मांगी जाती थी। गुलशन ने ये पैसा देने से मना कर दिया था। ऐसा भी कहा जाता है कि इंग्लैंड भाग चुके नदीम ने गुलशन को मारने के लिए हत्यारों को किराए पर लिया था।